जिला अध्यक्ष निर्मल कोसरे एक जिला पंचायत सदस्य जो कांग्रेस की एक मात्र अध्यक्ष पद की दावेदार थी,को सुरक्षित नहीं रख सके।
दुर्ग जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में आज कांग्रेस की खूब फजीहत हो गई। कांग्रेस की एकमात्र अध्यक्ष पद की दावेदार उषा सोनवानी जिला पंचायत में उपस्थित नहीं हो पाई। इसके बाद अध्यक्ष पद में भाजपा से अधिकृत प्रत्याशी सरस्वती बंजारे जिला पंचायत अध्यक्ष निर्विरोध निर्वाचित हो गई
अध्यक्ष के निर्वाचन के बाद तरह-तरह की अफवाहें होने लगी। यहां कुछ कांग्रेस कार्यकर्ता दबी जुबान से जिला अध्यक्ष निर्मल कोसरे को जवाबदार बता रहे थे। दरअसल में जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव में भाजपा के पास 6 सदस्य तो वहीं कांग्रेस के पास 5 सदस्य थे एक सदस्य निर्दलीय प्रिया साहू थी जो भाजपा के खेमे में चली गई। जिला पंचायत अध्यक्ष के कांग्रेसी दावेदार उषा सोनवानी के गायब होने से हड़कंप मच गया। जानकारी के मुताबिक उनके पुत्र जिला पंचायत में उपस्थित थे उसके बाद मोहन नगर थाना में इस मामले को लेकर शिकायत भी दर्ज कराई गई जिसमें उल्लेख है कि उषा सोनवानी अहिवारा विधायक डोमनलाल कोरसेवाड़ा के पास आशीर्वाद लेने गई थी उसके बाद उनका मोबाइल नंबर बंद बताया। रहस्यमय तरीके से गायब होने के बाद उषा जिला पंचायत के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की वोटिंग में पहुंची ही नहीं। इसमें कांग्रेस के जिला अध्यक्ष निर्मल कोसरे की भूमिका पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
दुर्ग जनपद में कांग्रेस उतार नहीं पाई अध्यक्ष
जिला पंचायत में आज अध्यक्ष प्रत्याशी गायब हो गई वही जनपद अध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस ने अपनी ओर से कांग्रेसी प्रत्याशी नहीं उतारकर बीजेपी को तोड़कर संतोषी देशमुख को आगे कर उपाध्यक्ष पद हासिल की लेकिन अब उस पर भी सवाल होना लाजमी है कि ऐसा क्यों किया गया। जिला पंचायत में उपाध्यक्ष पद पर कांग्रेस में देवेंद्र चंद्रवंशी को मैदान में उतारा लेकिन 7- 4 से बीजेपी अधिकृत पवन शर्मा से चुनाव हार गए। इसके बाद भाजपा ने जमकर जश्न मनाया वहीं कांग्रेस के नेता निराश होकर अपने गंतव्य की ओर लौट गए।
कोई बड़ी डील का संदेह!
कांग्रेस के सभी जिला पंचायत सदस्य की जिम्मेदारी सूत्रों के अनुसार जिला अध्यक्ष निर्मल कोसरे की थी। तो वही कांग्रेस की उषा सोनवानी भाजपा के विधायक कोरसेवाड़ा के पास आशीर्वाद लेने क्यों गई इस पर भी बड़ा सवाल है साथ ही साथ यह भी सवाल उठ रहे हैं कि उन्हें जाने किसने दिया इस मामले पर कांग्रेस संगठन को तहकीकात जरूर करनी चाहिए। कांग्रेस बीजेपी पर खरीद फरोख्त का आरोप लगाती रही है लेकिन जब अंदेशा था की खरीद फरोख्त हो सकता है ऐसे में एन मौके पर उषा सोनवानी को सुरक्षित क्यों नहीं रखा गया? क्या जिला अध्यक्ष निर्मल कोसरे को नहीं पता था कि वह एकमात्र दावेदार है यदि बीजेपी उसको रोक ले , गायब कर दे या खरीदी बिक्री ना हो उसके लिए जिलाध्यक्ष के पास क्या व्यवस्थाएं थी ? इस बात से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता की पांच ही कांग्रेस के सदस्य थे अंतत भाजपा का ही बनना था, ऐसे में कांग्रेस को इस चुनाव का बहिष्कार कर देना था लेकिन जिला अध्यक्ष एक शिकायत और बीजेपी के खिलाफ बयान देने के अलावा कुछ नहीं कर सके।
टिकट देने में भी बरती गई लापरवाही
जिला अध्यक्ष निर्मल कोसरे विधानसभा चुनाव में स्वयं चुनाव लड़े , खुद हार गए, पार्टी की बुरी तरीके की हार जिले में हुई नैतिकता के नाते उन्हें इस्तीफा भी देना था लेकिन वह इंतजार करते हैं, लोकसभा चुनाव हारने की। उसके बाद पंचायत चुनाव में टिकट वितरण में लापरवाही बरती गई, जिला पंचायत अध्यक्ष रही पुष्पा यादव का टिकट काटकर विक्रांत अग्रवाल को दे दिया गया जो चुनाव हार गए, वही धमधा जनपद अध्यक्ष सरस्वती रात्रे को भी टिकट नहीं मिला जिसके बाद युवा कांग्रेस ने उसके समर्थन में भी पत्र जारी कर दिया वहां कांग्रेस समर्थित दोनों प्रत्याशी हार गए यह भी बड़ा कारण रहा। सामंजस्य से यदि कांग्रेस पार्टी के जिला अध्यक्ष कार्य करते तो बीजेपी के पास जिला पंचायत अध्यक्ष का कैंडिडेट ही नहीं बचता लेकिन कांग्रेस की गुटबाजी ने लुटिया डुबो दी।
जिला अध्यक्ष निर्मल कोसरे को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का खास सिपहसलाहकार माना जाता है। पंचायत चुनाव में भद्द पीटने के बाद भी निर्मल कोसरे जिलाध्यक्ष पद पर बने रहेंगे। तब तो फिर धन्य है इतना कुछ होने के बाद भी कोई नैतिक जिम्मेदारी लेने वाला नहीं है, केवल बीजेपी पर आरोप लगाकर इति श्री कर लिया जाएगा वहीं अपने अधिकृत सदस्य से इस पूरे मामले का सच भी उनके मुंह से उगलवा ले बड़ी बात होगी। खबर लिखे जाने तक उषा सोनवानी तक संपर्क नहीं हो सका है।
