गरियाबंद। रामायण में भले रावण ने अपने प्रिय भाई कुंभकरण को साम्राज्य से अलग न किया हो लेकिन गरियाबंद के दशहरा मैदान में रावण और कुंभकर्ण दोनों अलग भू-भाग में मौजूद है. रावण राजिम तो कुंभकरण बिंद्रानवागढ़ विधानसभा के भू-भाग में स्थापित है. इसलिए गरियाबंद का दशहरा मैदान चुनाव में चर्चा का विषय बना रहता है. गरियाबंद जिला मुख्यालय में मौजूद इस दशहरा मैदान का इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है.
यहां स्थापित रावण और कुंभकरन की विशाल प्रतिमा आकर्षण का केंद्र तो है ही पर महज दो मीटर की दूरी में अलग अलग क्षेत्र में यह भू-भाग बंट जाता है. यही वजह है कि चुनाव सीजन में इस मैदान और रावण कुंभकर्ण की चर्चा सब की जुबान पर होता है. दरअसल एक ही मैदान में दोनों भव्य मूर्ति की स्थापना की गई है, लेकिन रावण राजिम विधान सभा और एक मिटर की दूरी पर स्थापित कुंभकरण बिंद्रानवागड़ विधान सभा के भू-भाग में मौजूद होता है. चुनावी सीजन में होने वाले दशहरा में इस ऐतिहासिक मैदान में दोनों ही विधानसभा क्षेत्र के नेता और समर्थकों की भी खासी भीड़ जुटती है.
सबसे ऊंची मूर्ति बनाने की सनक,1969 में बनाई गई थी मूर्तियां
आजादी के पहले से रामलीला का प्रचलन था. गरियाबंद के दशहरा मैदान का भी इतिहास 100 साल से भी ज्यादा पुराना है.आजादी के बाद दशहरा धूमधाम से मनाए जाने लगा था. ग्राम के लिहाज से आसपास के 50 किमी की परिधि में गरियाबंद सबसे बड़ा गांव हुआ करता था,लेकिन बैगर रावण मूर्ति के रामलीला का मंचन अधूरा था.इसी बीच अंबेडकर वार्ड में रहने वाले मालगुजार सदाशिव मेश्राम ने भव्य रावण मूर्ति स्थापित करने की ठानी.उनकी मंशा थी की रावण की सबसे वृहद मूर्ति बनाई जाए जो दूसरे जगह न हो.और फिर 30 फिट ऊंची भव्य मूर्ति बनवाया जो अब तक के सबसे ऊंची मूर्ति में सुमार है.बगल में उन्होंने कुंभकरण की मूर्ति भी बनवाई.मूर्ति के नीचे नेम बोर्ड पर अपनी इकलौती बेटी रामकुवर बाई लोन्हारे का नाम अंकित करवाया.
जिले में महिला मतदादाता की संख्या ज्यादा
चुनावी चर्चा के बीच पुरुष की तुलना में ज्यादा संख्या में मौजूद महिला मतदाताओं की भी चर्चा सुर्खियों में होती है.निर्वाचन शाखा की रिपोर्ट के मुताबिक 2023 में सूची के अंतिम प्रकाशन में जिले के दो विधान सभा में कूल 454559 मतदाताओं में महिलाओ की संख्या 231244 और पुरुष मतदाता की संख्या 2 लाख 23293 है. लेकिन दोनों ही सीट पर राजनीतिक पार्टियों ने महिला प्रतिनिधि को प्राथमिकता नहीं दिया.
अविभाजित विधान सभा में कांग्रेस ने पहली बार 1957 में हुए मनोनयन में एक नाम श्यामा कुमारी का तय किया था.1962 में पहली बार हुए चुनाव में भी बिंद्रनवागढ के लिए श्यामा कुमारी को प्रत्याशी बनाया.1972 में पार्वती कुमारी शाह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में बिंद्रानवागढ़ से जीत दर्ज कराया था. इसके बाद 9 बार चुनाव हो चुके और 10 वें की तैयारी है. दोनों प्रमुख दलों के पास विधायक बनाने महिला प्रतिनिधि नहीं मिला.