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एक नेताजी और कार्यकर्ताओं की गजब कहानी आप भी पढ़ें

चुनावी बाजार @ रायपुर डेस्क

चुनाव का रण शुरू हो गया है, आप इस कहानी से कितना इत्तेफाक रखते हैं यह महत्वपूर्ण नहीं है महत्वपूर्ण यह है कि यह कहानी हमें सीख देती है चुनावी माहौल है चुनावी बातें हैं एक ऐसी कहानी जिसे आप पढ़कर समझकर आपके साथ हुई या बीते किस्से इससे रिलेट कर सकते हैं आप इस कहानी के भीतर क्या अपने आप को पाते हैं यह बड़ा सवाल है आईए बताते हैं आपको। यह कहानी एक नेता और कार्यकर्ताओं के साथ की है आपके साथ यदि ऐसा कुछ हुआ हो तो मात्र इसे संयोग मानिए


एक नेता साल 2018 विधानसभा के चुनाव में विजयी होते हैं। लोगों ने एक पार्टी के लहर के साथ साथ दूसरे दल के पहले हुए शासन से परेशान होकर अपने एक नेता को जिताया। नेताजी ने चुनावी प्रचार के दौरान सबसे पारिवारिक रिश्ता बनाने की बात कही पूरे चुनाव के दौरान उन्होंने इसी तरीके का भाषण जगह-जगह दिया वे चुनाव जीत जाते हैं अच्छे खासे मतों से।
उसके बाद स्वागत अभिनंदन कार्यक्रम होता है एक कार्यक्रम में वह कहते हैं कि कोई भी काम हो तो डायरेक्ट मुझसे मिलना मुझको बताना,किसी के मार्फत या किसी बिचौलियों, एजेंट को लेकर ना आना। इतना कहते ही कार्यकर्ताओं के होश उड़ गए, दबी जुबान से कार्यकर्ताओं ने कहा कि हमने समर्पित होकर कार्य किया क्या हम बिचौलिए हुए मैंने जिनको वोट देकर जिताया ,जिसके लिए मेहनत की लोगों को कहा अब हम कार्यकर्ता न होकर बिचौलिया हो गए।
कार्यकर्ताओ के साथ बिचौलिए जैसा व्यवहार
बातें बर्दाश्त हो गई लेकिन व्यवहार भी एक प्रकार से कार्यकर्ताओं के साथ बिचौलिए जैसा ही रहा।
लोगों ने सोचा बड़े विभागों के मंत्री हैं समझने में वक्त लगेगा 1 साल रुकते हैं। दूसरे साल परिवार का कहर बढ़ा । पुत्रों के दखल के कारण कई विभागों के काम ही नहीं होते थे, ना ट्रांसफर हो पाती थी, कार्यकर्ता अपने घर के लोगों को सही जगह पर ला नहीं पाए, मतलब ट्रांसफर नहीं कर पाए। कार्यकर्ताओं के काम नेता जी के निवास में होती ही नहीं थी। कार्यकर्ता परेशान रहने लगे इसी बीच कोरोना का दौर आ गया।
कोरोना के दौरान कार्यकर्ताओं की सुनना तो दूर किसी की मदद भी नहीं हुई। फिर भी कार्यकर्ता इसको बर्दाश्त कर गए जैसे तैसे 3 साल बीत गया अब लगा लोगों को इस बार कुछ मिलेगा,, नेताजी ने संगठन को ही खत्म कर दिया ना संगठन की बैठक हुई ना ब्लॉक अध्यक्ष का चल पाया।
दूसरे दल लोगों को जमकर सम्मान
ऐसा पहले शायद संगठन के लोगों ने कभी नहीं देखा था निगम क्षेत्र में हो, नगर पंचायत क्षेत्र में हो अपने कार्यकर्ताओं से ज्यादा दूसरे दल के लोगों को सम्मान मिला, छत्तीसगढ़िया ठेकेदारों से ज्यादा बाहर के ठेकेदारों को काम मिला। मानो जैसे उनका बोलबाला रहा प्लेसमेंट एजेंसी के ठेके से लेकर एल्डरमैन जैसे पदों में भी उन्हें सुशोभित किया गया बाकायदा सभी बाहरी एल्डरमैनो को काम भी मिला।
एक फाइनेंसर के 1 से 5 कॉलेज हो गए लेकिन कार्यकर्ताओं को जनसंपर्क निधि से ज्यादा कुछ नसीब भी नहीं हुआ। उल्टा अपने कार्यकर्ताओं द्वारा जब दूसरे दल के सरपंच, जनपद सदस्य जिला पंचायत सदस्य के बुरे और अवैध कार्योंने कंप्लेंट किए जाते थे तो नरम रुख अपनाया जाता था और दूसरे दल के लोगों को ही ही लाभ मिलता था, यहां तक की अधिकारियों के साथ सेटिंग कर ली जाती थी, कट्टर कार्यकर्ता मन मसोस कर रह गए। बाकायदा सरपंच, जनपद सदस्यों को टूर घूमांने ले जाते थे वह भी रो धोकर, वहां खाना भी होटल में नसीब नहीं होता था कंजूसी की हद इतनी खाना बनाने वाले साथ ले जाते थे लोगों को आएं बाए खाना खिलाया गया।
अपने ही लोगों को निपटाया गया
निगम क्षेत्र में चुनाव हुए अपने ही लोगों को निपटाया गया, जिन निर्दलीयों ने हराया उन्हें अपनी पार्टी में तुरंत शामिल कर लिया, ऐसा लगा जैसे खुद ही निर्दलीय प्रत्याशी खड़े किए और जीता दिए, तनिक सोचा भी नहीं की उस पार्षद पर क्या बीत रही होगी। आज नहीं तो कल सब मालूम होना था पता भी चला लेकिन बंगला जो प्रिय था। जिस निर्दलीय ने हराया बाकायदा ऐसे लोगों को निगम के मंत्री परिषद में जगह भी मिल गई शायद मंत्री जी को पता ही ना हो लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है उनकी जानकारी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता था भले वह सामने आकर कुछ भी कहे मेरी जानकारी में नहीं थी मुझे नहीं पता है लेकिन अपने ही कट्टर कार्यकर्ताओं को निपटाया गया। कई लोग धीरे-धीरे बंगले छोड़कर बाहर होते गए। गांव-गांव में गुट बनाया गया और यह गुट बंगले से ही बनाए गए ताकि कार्यकर्ता आपस में लड़ते रहे और नेताजी मौज करते रहे।
घर से ही संचालित होती रही गुटबाजी
आप सुनते होंगे कि कार्यकर्ताओं के बीच गुटबाजी है लेकिन यहां ऐसा नहीं हुआ बाकायदा गुटबाजी घर से संचालित की गई। बेटों को आदेश दिया गया निगम क्षेत्र, नगर पंचायत क्षेत्र से लेकर ग्राम पंचायत में अपना दखल बढ़ाकर अलग-अलग गुट बनाया जाए ताकि फायदा आने वाले चुनाव में सीधा हमें हो।
नेताजी का मानना था कि सब गुट बनाकर आपस में लड़ते रहे और सारे लोग कंपटीशन करेंगे कंपटीशन में फायदा हमें ही मिलेगा जो बेटों से नहीं संभल पाएगा उसे मैं संभाल लूंगा।
समर्पित कार्यकर्ताओं से ज्यादा विरोधियों को सम्मान मिला कार्यकर्ताओं के हाथ में पांचवें साल उम्मीद थी कि कुछ आएगा पार्षदों के हिस्से का भी हिस्सा खा लिया गया लेकिन 100 चूहे खाकर बिल्ली हज को चले जाती है तो कहते हैं कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा एक बार और आने दो।

बूथ कार्यकर्ता बदले,₹ 5000 से उपकृत
पांचवे साल बूथ के कार्यकर्ताओं को 5000,10000 से नवाजा गया। उपकृत करने का तरीका भी गजब था अपने जेब से फूटी कौड़ी नहीं निकले सरकारी पैसों को ही कार्यकर्ताओं को थमाए गए।कई चेक में नाम गड़बड़ हुई कई कार्यकर्ताओं ने चेक ही वापस नहीं किए।
पांचवें साल में सिर्फ बूथ के कार्यकर्ताओं को मैनेज किया गया।
जिन बूथ कार्यकर्ताओं के बदौलत नेताजी जीते थे उन बूथ कार्यकर्ताओं को हटाकर नया टीम बनाया गया।
कार्यकर्ताओं को बोला गया कि मुझे चुनाव जीतना आता है तुम लोग काम नहीं करोगे तो मैं तीसरे चौथे लेयर में काम कर लूंगा, लोग बताते हैं कि उनका तीसरा चौथा लेयर अन्य दलों के कार्यकर्ता और ठेकेदार हैं।
ऐसे नेता को फिर टिकट मिला है अब कार्यकर्ताओं के सम्मेलन का दौर जारी है कार्यकर्ताओं को मनाने बुझाने का भी दौर जारी है कार्यकर्ता सोच रहे हैं चलो अबकी बार कुछ अच्छा हो जाएगा लेकिन सच्चाई तो यह है कि नेताजी ना कभी अच्छा करते हैं न कभी अच्छा करने देंगे।
एक सिरे से खत्म कर दिया गया
5 साल पहले दिल्ली दौड़ लगाने वाले नेता और उनके कार्यकर्ता सोच रहे थे कि इस बार तो मिलेगी जानकारी के मुताबिक क्षेत्र में 5 साल पहले बड़े-बड़े नेता हुए दावेदारी करने वालों को अंतिम समय में उपकृत भी किया गया इस बार लग रहा था कि उन्हें टिकट मिल जाएगी हल्ला भी हुई लेकिन नेता जी अपना पद कहां छोड़ने वाले वह फिर प्रत्याशी बन गए सभी बड़े नेताओं को एक सिरे से निपटाया गया उसके बावजूद वह नेता समझ नहीं पाए बड़े नेता के कार्यकर्ताओं को भी पूरे 5 साल धोखे के अलावा कुछ नहीं मिल पाया।

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Author: dhaaranews

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