गांव गांव में चुनावी बिसात बिछने लगी है। इस कड़ी में कई जगहों पर कम आबादी वाले लोगों का भी सामाजिक दृष्टिकोण से आरक्षण हुआ है लेकिन वहां ब्लैकमेल का खेल चल रहा है।
चलिए एक ऐसे ही गांव की आपको कहानी बताते हैं दुर्ग जिले के एक गांव में पूर्व में उपसरपंच रहे व्यक्ति जो पंचायत की मीटिंग में ढंग से पूरे 5 साल गए भी नहीं गांव के विकास कार्यों में कोई सहयोग नहीं किए एन केन प्रकारेन सरपंच को काम नहीं करने देना, ग्रामीण बैठकों में सरपंच के नाक को नीचे गिराने की नाकाम हरकत करते रहे।
आरक्षण तत्कालिक सरपंच का कट गया अब जो उपसरपंच रहे उसके वर्ग का आरक्षण आ गया आदमी सब्र ही ना करें अब गांव में उस आदमी को या उसकी पत्नी को क्यों सरपंच बनाया जाए यह चर्चा चलने लगी जो आदमी पूरे 5 साल पंचायत की बैठकों से गायब रहा उस आदमी को फिर गांव कैसे सौंप दिया जाए।
बकरा भात और 1 लाख में सौदा
समाज विशेष का आरक्षण आ गया बैठक बुलाई गई रात में दो-तीन कैंडिडेट आए सामाजिक बैठकों में कुछ अच्छा तो होना नहीं है बुरा ही होना है सो बुरा हुआ चिट निकला गया तय हुआ कि जिसका नाम आएगा वही सरपंच प्रत्याशी होगा दूसरा आदमी भरेगा तो उसको समाज से निकाल देंगे और सौदेबाजी हुई ₹100000 समाज के खाते में और बकरा भात तय हुआ। उसके बाद कोई दूसरा प्रत्याशी भरेगा तो समाज को ₹200000 दंड देगा इस तरह की सौदेबाजी समाज ने सरकारी भवन में तय कर लिया। यहां एक छत्तीसगढ़ी पुरस्कृत फिल्म “भूलन द मेज याद आ गया।
हाल यह है कि कहीं ना कहीं समाज विशेष में अब आग सुलग रही है और यह आजकल बड़े पैमाने पर फूटेगा ही फूटेगा।
यहां उस आदमी पर कई सारे सवाल खड़े किए जा सकते हैं लेकिन हम सवाल यह कर रहे हैं कि वह बकरा भात का पैसा पंचायत से निकलेगा क्या? ₹100000 जो समाज को मिलेगा वह अपनी जेब से देगा या सरकारी फंड में भ्रष्टाचार करेगा मतलब गांव की बर्बादी उस बैठक में तय कर ली गई बड़ा सवाल ऐसी बैठकों में रोक लगाने शासन को भी जरूरत है पर कौन रोकेगा।
बहरहाल उस बकरे की क्या गलती है भाई करम तुम करो और भुगते बकरा।
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नोट: हम स्वस्थ और सुन्दर पंचायती राज व्यवस्था बनाने में लगे हैं। किसी जाति, धर्म सम्प्रदाय के विरुद्ध हम नहीं है हम सबका सम्मान करते हैं।