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अभिनेत्री के क्रिकेटर के प्रति ‘इकतरफा’ प्रेम की गाथा :-
मन व्यथित है मित्रों! आदरणीय उर्वशी रौतेला जी की पीर हृदय को चीर रही है। पिछले कुछ दिनों से वे अपने हृदय में उठ रहे हूक को फेसबुक पर थूक रही हैं, पर यह ऋषभ पन्तवा मूक है।उनकी दर्द भरी पाती वह ससुर का नाती इग्नोर किये जा रहा है।
उर्वशी के दुख से देश का समूचा युवा वर्ग दुखी है। उर्वशी की वाल पर देश के लाल धमाल मचाये हुए हैं। उनकी पीड़ा से पीड़ित युवाओं का भोंकार पार कर रोना बता रहा है कि भारत अब भी विश्वगुरु है। हमारे लड़कों में दया है, करुणा है, प्रेम है… वे उनका दुख बांट लेने के लिए बेचैन हैं, पर उर्वशी पलट कर नहीं देखती। वह केवल ऋषभ पंत के नाम का जप कर रही हैं।
उर्वशी पंत पर प्रेम का क्लेम कर रही हैं, और वह अपने गेम में मस्त है। यह शेम शेम वाली बात है। उर्वशी का प्रेम कितना सच्चा है इसका अंदाजा बस इसी बात से लग जाता है कि उन्होंने पंत के लिए साड़ी तक पहन ली। हिन्दी फिल्मों की किसी हीरोइन का पूरे कपड़े पहन लेना कितना बड़ा बलिदान है, यह देश समझ रहा है। नहीं समझता तो बस पंत नहीं समझता।
मैं सोच रहा है कितना कठोर है यह पंत जो उर्वशी जैसी रूपसी के प्रेम को भी अस्वीकार कर रहा है। कल मैं सुश्री उर्वशी की वाल पर गया था। मैंने देखा, फेसबुक के असंख्य प्रतिष्ठित बुजुर्ग उनकी चरण वंदना कर रहे थे। उनकी टिप्पणियां उर्वशी का ध्यान आकृष्ट कर लेने भर के लिए जैसे तड़प रही थीं, छिछिया रही थीं, गिड़गिड़ा रही थीं। यदि उर्वशी कह भर दें तो ये लाखों लोग अपने हाथों अपना कलेजा निकाल कर, उसे तेल में फ्राई कर मसाला छिड़क के उनके आगे परोस कर कहेंगे, “खा लो प्रिये! इसी बहाने हमारा हृदय तुम्हारे उदर में पहुँच कर तर जाएगा।” पर पंत पहाड़ी हैं, शायद इसीलिए उनका हृदय भी पहाड़ सा कठोर हो गया है।
मित्रों मेरा हृदय भी कलप रहा है। देश दुखी है महंगाई से, पर मैं दुखी हूं सुश्री रौतेला की घटिया कविताई से… मैं लानत भेजता हूँ अपनी मित्रसूची के सारे कवियों शायरों कायरों को, जो दिन भर “चीनी को जमा कर के फिर से गन्ना बना दूँ” टाइप की रचनाएं ठोकते रहते हैं। धिक्कार है उनको, जो वे आज तक कुछ ऐसा नहीं लिख सके जिससे कोई रूपसी अपने वियोग की पीड़ा बता सके। तुमलोग दिन भर “तेरा पायल ने घायल किया” ही लिखो…
कुछ लोग कह रहे हैं कि पंत दोषी नहीं है, उर्वशी झूठ मुठ में पीछे पड़ी है। आपसे निवेदन है, पंत को संत न समझिये, वह उर्वशी का कंत है। वह रौतेला के साथ सौतेला व्यवहार नहीं कर सकता। अगर करेगा, तो नरक की आग में जरेगा।
मित्रों! उर्वशी के दर्द को राष्ट्रीय दर्द घोषित किया जाना चाहिये। रौतेला जैसी रूपसी का वियोग इस देश लिए दुर्योग है। आइये, हम सब मिल कर आंदोलन करें कि उर्वशी को उसका पंत मिल सके।
सादर/साभार
सुधांशु तक के फेसबुक वॉल से लिया गया पोस्ट है
