गुलाब @ दुर्ग ग्रामीण
दुर्ग जिला पंचायत क्षेत्र क्रमांक 6 में हो रहे चुनाव में भाजपा को मुंह की खानी पड़ी है कांग्रेस की अधिकृत प्रत्याशी लक्ष्मी साहू ने 14000 से ज्यादा मत हासिल कर लिए। तो वहीं बीजेपी अधिकृत प्रत्याशी रही दिव्या साहू को 9000 से भी कम मतों से संतोष करना पड़ गया। अहिवारा व दुर्ग ग्रामीण विधानसभा मिलाकर 24 गांव इसमें शामिल थे।
पहले अनुमान लगाया जा रहा था की इस चुनाव में कड़ी टक्कर रहेगी लेकिन आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपा के लिए चिंतन का विषय है लोगों के जहन में भूपेश बघेल का फैक्टर काम कर गया कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने पहले की तरह अपनी पार्टी से दगाबाजी नहीं की भाजपा इसी उम्मीद में थी कि कांग्रेस में गुटबाजी हो और फायदा भाजपा के प्रत्याशी को मिल जाए लेकिन ऐसा हो न सका।
चुनाव भाजपा के लिए क्यों बड़ा था
इस चुनाव की गहराई में अगर आप जाएं तो भाजपा खेमे से मंडल अध्यक्ष गिरेश साहू का गांव नगपूरा, पूर्व मंडल अध्यक्ष दिनेश देशमुख का गांव थनौद, पूर्व जनपद अध्यक्ष तीरथ देशमुख का गांव अंजोरा, व संतोषी कृष्णा देशमुख का गांव ढाबा (अंजोरा) पूर्व जनपद अध्यक्ष बीना महतेल का क्षेत्र,पूर्व भाजयुमो अध्यक्ष त्रिलोक साहू का गांव दमोदा से लेकर अधिकृत प्रत्याशी रही दिव्या साहू का गांव कोटनी लगभग सारे जगहों पर जनता ने सिरे से नकार दिया। आखिर क्यों?
यह हार बड़ी और हो जाती है जब प्रदेश में भाजपा के कद्दावर नेता गौरीशंकर श्रीवास दुर्ग ग्रामीण के प्रभारी हों।
यह कह देना बहुत आसान है कि सरकार सत्ता में है सत्ता में सरकार तो पहले भी थी जब सांसद चुनाव लड़ा गया, कांग्रेस ने इस उपचुनाव में बड़ा चेहरा नहीं उतारा था। वह शायद इसलिए की विधानसभा चुनाव से पहले क्या भाजपा एकजुट है यह कांग्रेस देखना चाहती थी। लेकिन कांग्रेस ने रिस्क लिया और भाजपा को चारों खाने चित कर दिया। बीजेपी ने भी प्रत्याशी चयन में कोताही बरती।
इस उपचुनाव में नजर आने वाले लोकसभा सांसद विजय बघेल, जिलाध्यक्ष जितेंद्र वर्मा, पूर्व मंत्री द्वय जागेश्वर साहू, रमशिला साहू, जिला महामंत्री ललित चंद्राकर, जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष प्रीतपाल बेलचंदन, जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी माया बेलचंदन यह सब मिलकर कांग्रेस का किला भेदने में नाकाम रहे।
इस चुनाव में सरकार के खिलाफ विरोधी लहर (anti-incumbency) हावी जरूर थी लेकिन भाजपा इसे भुना नहीं पाई।
सरकार के खुफिया एजेंसी भी इस चुनाव में भाजपा के लगभग जीत और कांग्रेस के डांवाडोल स्तिथि का दावा कर रही थी लेकिन ऐसा हो ना सका। कांग्रेस से अधिकृत प्रत्याशी के मुकाबले बीजेपी से अधिकृत प्रत्याशी वित्तीय रूप से जरूर कमजोर थी लेकिन 15 साल सरकार में रहे नेताओं के पास किस चीज की कमी थी गुटबाजी ले डूबी या कुछ और मंथन और चिंतन भाजपा के लिए बहुत जरूरी है ऐसी स्थिति रही तो फिर आगामी दुर्ग ग्रामीण विधानसभा चुनाव में भाजपा को मुंह की खाने के लिए तैयार रहना चाहिए।