रायपुर। भारत में भगवान शंकर के अनेकों मंदिर हैं, बहुत से मंदिरों का पूरे देश में विशेष स्थान है क्योंकि इन मंदरों में होने वाली पूजा एवं प्रचीन शिव मंदिरों से जुड़ी मान्यताओं के चलते इनकी पहचान देशभर है। इसी तरह का एक मंदिर है छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में यहां मान्यताएं जानकरा आप भी हैरत में पड़ सकते हैं।
हाजीराज नाइक ने कराया मंदिर का निर्माण
इस मंदिर को हटकेश्वर नाथ के मंदिर रुप में जाना जाता है। यह रायपुर से केवल 10 किलोमीटर दूर खारुन नदी के किनारे स्थित है। कहा जाता है कि 1402 ईस्वी में कल्चुरि राजा रामचंद्र के पुत्र ब्रह्मदेव राय के शासन काल में हाजीराज नाइक ने मंदिर का निर्माण कराया था।
इस मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर बड़ी संख्या में श्रध्दालु जुटते हैं। मंदिर के परिसर में शिवलिंग के पास राम, जानकी और लक्ष्मण जी की प्रतिमाएं हैं।
मंदिर निर्माण से जुड़ी कई मान्यताएं प्रचलित
हटकेश्वर मंदिर की स्थापना से कई जुड़ी बहुत सी मान्यताएं प्रचलित हैं इनमें से सबसे अधिक सुनाने वाली मान्यता यह है कि द्वापर युग में खारुन नदी को द्वारकी नदी के नाम से जाना जाता था।
बताया जाता है कि महाकौशल प्रदेश के हैहयवंशी राजा ब्रह्मदेव जब नदी किनारे स्थित घने जंगल में शिकार करने आए थे तब नदी में बहता पत्थर का शिवलिंग दिखा जिसकी उन्होंने स्थापना की है। इससे अलग और भी मान्यताए हैं जो लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। इसमें बताया गया है कि 1400 ईसवी में कल्चुरी शासक भोरमदेव के पुत्र राजा रामचंद्र ने इसका निर्माण करवाया है।
मंदिर के पुजारी ने बताया त्रेतायुग का किस्सा
मंदिर की स्थापना की कहानी काफी पुरानी है यहां के पुजारी इसे त्रेतायुग से जोड़कर सुनाते हैं, कहा जाता है कि जब राम भगवान चौदह वर्ष का वनवास काटने वन आए उसी वक्त लक्ष्मण जी ने इस शिवलिग की स्थापना थी।
साथ ही यह भी कहा जाता है कि खारुन नदी के किनारे इस शिवलिंग की स्थापना हनुमान जी ने की थी वह ही इस शिवलिंग को अपने कंधों पर रखकर लाए थे।
गीता में भी है मंदिर का जिक्र
मंदिर के पुजारी ने बताया कि इस मंदिर का जिक्र हमें श्रीमद्भागवत गीता में भी मिलता है, गीता के पांचवें स्कंध के 16वें और 17वें श्लोक में हटकेश्वरनाथ का उल्लेख है। जिसमें कहा गया है कि हटकेश्वरनाथ अतल लोक में अपने पार्षदों के साथ निवास करते हैं और जहां स्वर्ण की खान पाई जाती है।
500 साल से जल रही अखंड धूनी
मंदिर में 500 साल से लगातार अखंड धूनी प्रज्वलित हो रही है। महादेव के भक्त, साधु यहां अग्नि के ताप से रुद्राक्ष की माला को सिद्ध करके अपने कष्टों का निवारण करते हैं। साथ ही धूनी की भभूत को प्रतिदिन माथे पर लगाने के लिए घर ले जाते हैं।
प्रदेश का पहला लक्ष्मण झूला
धार्मिक मान्यता के साथ पर्यटक को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने महादेव घाट में नदी के दोनों छोर को जोड़ते हुए एक लक्ष्मण झूला बनाया है। ये प्रदेश का पहला लक्ष्मण झूला है जो नदी के ऊपर श्रद्धालुओं के लिए बनाया गया है। प्रदेशभर से लोग यहां पहुंचते हैं और सुबह से शाम लक्ष्मण झूले का आनंद लेते हैं।