(विशेष आलेख)। त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था ग्रामीण परिवेश की सबसे बेहतरीन व्यवस्थाओं में से एक है। शासन की प्रत्येक योजनाओं का लाभ जनता को मिले यह प्रयास इस व्यवस्था से होता है। लेकिन पंचायत वेब सीरीज ने जो व्यवस्था है उस पर कुठाराघात किया और पूरी पोल खोल डाली। स्वच्छ भारत मिशन से लेकर सचिवों की क्या स्थिति है उस पर गजब का प्रकाश डाला गया उसी को ध्यान में रखते हुए हमने पंचायती पर विशेष श्रृंखला शुरू की है।
पंच कम सरपंच ज्यादा
गांव में पंच इसलिए भी बना जाता है कि गांव की सरकारी जमीन में कब्जा किया जा सके या अपने ही कुछ लोगों को बचाया जा सके। सरकारी जमीनों पर कब्जा आम बात है लेकिन यह सरकार के लिए सर दर्द बना हुआ है आए दिन राजस्व विभाग में इसकी शिकायत हर ग्राम पंचायत में मिल जाती है लेकिन कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति कर ली जाती है क्योंकि या तो उसका सगा संबंधी पंचायत में मौजूद है या तो इसी कब्जे के कारण पंच को वोट दिया जाता रहा है। राजस्व विभाग अपने ताकतों का प्रयोग इस राजनीतिक दबाव के चलते पंच कम सरपंच ज्यादा जैसे लोगों के कारण कार्रवाई नहीं कर पाती। एक कब्जा हटाने के लिए जनपद जिला से लेकर मंत्री तक को फोन किया जाता है और पार्टी विशेष का व्यक्ति रह गया तो फिर कार्रवाई सिफर रह जाती है।
पंच को दिलाना होता है योजनाओं का लाभ
प्रख्यात उपन्यासकार स्वर्गीय मुंशी प्रेमचंद ने पंच को परमेश्वर बताया था। लेकिन भारत की जनता महान है जिस जनप्रतिनिधि को हाथ पैर जोड़ते हर चुनावी मौसम में देखा जाता है इस जनप्रतिनिधि के आगे जनता को बाद में घुटने टेकने पड़ते हैं। छोटी-छोटी योजनाओं के लिए भी पंच को पैसा देना पड़ जाता है या तो पंच पूरे 5 साल नदारत रहता है या फिर हर बात के पैसे लेगा या कुछ करेगा ही नहीं।
परिणाम और निष्कर्ष यह निकलता है कि सरकारी योजनाओं का लाभ आप तक पहुंचे या नहीं पहुंचे एक व्यक्ति विशेष को लाभ जरूर मिलता है और सरकारी योजनाएं अंतिम व्यक्ति तक उस पंच के माध्यम से भी नहीं पहुंचता है जो पांच साल के लिए चुना गया। दोबारा फिर वह चुनाव लड़ता है अपने घर के वोट बैंक या ऐसी व्यवस्था होती है कि सामने वाले को चंद रुपयों के लालच में बैठा दिया जाता है या सेटिंग कर ली जाती है और फिर पंचायत में घुसकर उस कब्जे को बचाने का फिर चक्र चलता है अंतिम व्यक्ति तक शासन की योजनाओं का लाभ पहुंचने में इस तरह के पंच के कारण तकलीफ होती है । सचिवों के साथ सेटिंग, सरपंच को ब्लैकमेलिंग करके पूरा 5 साल निकाल दिया जाता है और बड़े डंके की चोट में यही पंच अपनी डींगे हांकता रहता है जिसके चलते जनता को योजनाओं से कोई सरोकार नहीं हो पाता। ऐसे में जो विकास परक सोच वाले पंच होते हैं , जो उसी चुनाव में जीत कर आए होते हैं इनकी संख्या वैसे भी कम होती है तो या तो वह निकल लेते हैं या इस भ्रष्टाचार और गंदगी में शामिल हो जाते हैं।
पंच परमेश्वर या जमीन हड़पेश्वर
कई लोग गांव में तो ऐसे होते हैं जो सरकारी जगह को घेर डालते हैं और बेचने निकल जाते हैं आवास योजना का फायदा मिला तो आबादी को बेच दो ,आबादी बेचकर पेट नहीं भरता तो सरकारी जमीनों पर कब्जा होता है। उस फोकट की जमीन को औने पौने दाम में बेचकर फिर अवैध जगह की कब्जे की तलाश में जुटा रहता है। पंचायत में पंच का रोल बहुत अहम होता है। प्रस्ताव को पास और फैल करना उनके हाथ में होता है। पंच को परमेश्वर की उपाधि से संबोधित किया जाता है लेकिन वह ‘परमेश्वर’ सरकारी जगह को कैसे कब्जा किया जाए इसकी जुगत में लगा रहता है सरकारी योजनाओं का फायदा उसके गांव के आदमी को मिले जरूरतमंद को मिले इससे पंच को कोई सरोकार नहीं होता है। खेल मैदान खत्म हो जाता है सरकारी भवन के लिए जगह नहीं मिलती है। उनके लिए आंदोलन ही रास्ता बचता है लेकिन उनको भी कुछ रिश्ते, नाते का वास्ता दिलाकर या किसी काम के एवज में शांत करा दिया जाता है।
अच्छे लोग भी नहीं देते साथ, दुर्जन के साथ मजबूरी में
गांव की राजनीति बड़ी अजीब होती है ऐसे लोगों को जो अवैध कब्जा हटाने में डटे होते हैं उनको बहुत तिरस्कार झेलना पड़ता है, उनको गलत साबित करने में पंच सरपंच, सचिव कोई कसर नहीं छोड़ते। उनके साथ गांव के भी अच्छे लोग साथ देने ही नहीं आते जिसके चलते ऐसे रसूखदार लोगों का प्रभाव बना रहता है और गांव की सरकारी जमीन किसी विशेष व्यक्तियों के हाथ में रहता है। गांव के विकास से लोगों को कोई सरोकार नहीं होता सच्चाई यह है। सामने वाला पंच गांव के विकास के लिए बना था कि अपने विकास के लिए परमेश्वर जाने। आवास योजना और जरूरतमंद व्यक्तियों का लाभ भी पंच दिला नहीं पाते न गरीब की आवाज बनकर पंचायत में अपनी बात कहते हैं। इसी अवैध कब्जों के कारण आबादी भूमि भी गरीब जरूरतमंद व्यक्तियों को नसीब नहीं होता।
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नोट:- पंच पद की गरिमा होती है। यह किसी विशेष व्यक्ति को इंगित करते नहीं लिखा गया है। कहानी की समानता कहीं भी पाई जा सकती है। इसके लिए लेखक, वेब पोर्टल जवाबदार नहीं है।