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Chhattisgarh: हाई कोर्ट पहुंचा आरक्षण मामला, राज्‍यपाल के खिलाफ दायर हुई याचिका


छत्तीसगढ़ विधानसभा में आरक्षण संशोधन विधेयक बिल पारित होने के करीब दो महीने बाद भी विधेयक राजभवन में अटका पड़ा है। इसको लेकर अब युवा अधिवक्ता हिमांग सलूजा ने आरक्षण के मुद्दे पर राज्यपाल अनुसुइया उइके द्वारा बिल रोकने के खिलाफ याचिका लगाई है। उन्होंने इसे संविधान का उल्लंघन बताया है।

बिलासपुर: प्रदेश में आरक्षण के लिए मचे घमासान के बीच राज्यपाल के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। युवा अधिवक्ता हिमांग सलूजा ने आरक्षण के मुद्दे पर राज्यपाल अनुसुइया उइके द्वारा बिल रोकने के खिलाफ याचिका लगाई है। उन्होंने इसे संविधान का उल्लंघन बताया है।

हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका में बताया गया है कि राज्य सरकार ने 18 जनवरी 2012 को प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत एससी वर्ग के लिए 12 एसटी वर्ग के लिए 32 व ओबीसी वर्ग के लिए 14 प्रतिशत किया था। जिसे छतीसगढ़ हाई कोर्ट ने विभिन्न याचिकाओं की सुनवाई करते हुए असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया। जिसके बाद छतीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में जनसंख्या व अन्य आधारों के आधार पर प्रदेश में आरक्षण का प्रतिशत 76 परसेंट कर दिया। जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लिए दिये जाने वाला 4 प्रतिशत आरक्षण भी शामिल हैं।नियमानुसार विधानसभा से आरक्षण बिल पास होने के बाद यह हस्ताक्षर होने के लिए राज्यपाल के पास गया, लेकिन राज्यपाल ने उसमे साइन नहीं किया। राज्‍यपाल धमतरी जिले के राजाराव पाथर गांव में अयोजित वीर मेला महोत्सव में शामिल हुई और वहां बयान दिया कि “मैने केवल आदिवासी आरक्षण बढ़ाने के लिए राज्य सरकार को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने के लिए कहा था। उन्होंने सबका ही बढ़ा दिया।

याचिका में बताया गया है कि कई समाचार पत्रों के माध्यम से राज्यपाल के बयानों की जानकारी मिली कि मैने आरक्षण विधेयक पर सरकार से दस प्रश्न पूछे हैं। यदि उसका जवाब मिल जाये तब मैं आरक्षण विधेयक पर साइन करूंगी।” अब सरकार ने उसका भी जवाब दे दिया है। फिर भी आरक्षण बिल को राज्यपाल ने लटका कर रखा है।

याचिका में बताया गया है कि राज्यपाल कब-कब और किस-किस सन में राजनैतिक पदों पर रही हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि वे राज्यपाल की भूमिका में न होकर एक राजनैतिक पार्टी के सदस्य की भूमिका में है। शायद इसलिए ही बिल पास नहीं कर रहीं हैं। जबकि संविधान के अनुसार यदि विधानसभा बिल पास कर दे तो राज्यपाल को तय समय मे उसे स्विकृति देनी होती है। राज्यपाल सिर्फ एक बार ही विधानसभा को बिल को पुनर्विचार के लिए लौटा सकती हैं। और यदि विधानसभा उसमें किसी भी तरह के संसोधन के साथ या बिना संसोधन के पुनः राज्यपाल को भेजे तो उन्हें तय समय मे स्विकृति देनी ही पड़ती है। पर राज्यपाल संविधान का उल्लंघन कर रही है। जिस वजह से प्रदेश में आरक्षण की स्थिति का कोई पता ही नही है।

हाईकोर्ट में लगी कई याचिकाओं की सुनवाई भी इसलिए ही ठप्प पड़ गई है कि आरक्षण का प्रतिशत प्रदेश में तय नहीं है। याचिका में राज्यपाल को जल्द से जल्द निर्णय लेने के लिए निर्देशित करने की मांग की गई है।

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Author: dhaaranews

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