दुर्ग जिले में पंचायती राज व्यवस्थाओं का क्या हाल है यह तो चर्चा करना भी फिजूल है जिला जनपद और पंचायत में प्रशासनिक और शासन के दबाव में नेताओं और अधिकारियों का बचने बचाने का खेल सालों से जारी है।
अभी हम बात कर रहे हैं जिला पंचायत दुर्ग में 2017 में हुए बहुचर्चित “कृषक भ्रमण घोटाले” के बारे में।
जहां उद्यानिकी विभाग द्वारा 2015-16 में कृषक अध्ययन यात्रा के लिए पुणे एवं बनारस की यात्रा करवाई थी उस मामले में गंभीर भ्रष्टाचार सामने आया था।
तात्कालिक जिला पंचायत अध्यक्ष के रिश्तेदारों सहित और जिला पंचायत के सभापति व सदस्य व जिनके नाम जमीन नहीं है ऐसे लोगों को भी कृषक भ्रमण कराया गया था।
मामले को आरटीआई कार्यकर्ता ने किया था उजागर
उद्यानिकी विभाग ने तात्कालिक जिला पंचायत अध्यक्ष के परिजनों को कृषक भ्रमण के नाम पर बनारस ले गए। उसके बाद उन्हीं लोगों को पुणे ले गए। एक ही किसानों को दो जगह आखिर क्यों ले जाया गया यह भी सवाल उस समय खड़ा हुआ था।
बताया जाता है तत्कालीन अध्यक्ष के रिश्तेदारों को पुणे के बहाने गोवा जैसे जगह की सैर सपाटा भी कराई गई। आरटीआई कार्यकर्ता निशांत शर्मा के मुताबिक यह यात्रा किसानों के लिए थी लेकिन जो किसान नहीं थे उन्होंने भी यह यात्रा कर ली और सरकारी पैसों का दुरुपयोग किया गया।
नही हुई कोई कार्रवाई न एफ आई आर
जिला पंचायत में जिम्मेदार अधिकारियों व अन्य के विरुद्ध एफ आई आर करने का प्रस्ताव लगभग 6 साल पूर्व किया गया था जिस पर आज पर्यंत कोई कार्रवाई नहीं हो पाई।
तात्कालिक जिला पंचायत सभापति मुकेश बेलचंदन की कृषि स्थायी समिति ने आपत्ती जताई थी और उनकी समिति के सदस्यों ने उनके नाम से उद्यानिकी विभाग के अफसरों पर कार्रवाई की मांग की थी।ठीक वैसे ही जयंत देशमुख जो तात्कालिक जिला पंचायत सदस्य रहे थे वे भी बनारस नही गए थे। कृषक जालम पटेल ने भी कहा था कि वे कभी भी इस यात्रा में नहीं गए थे। जस्सू नामक व्यक्ति को भी दोनों जगह की यात्रा करवाई। सूत्रों के मुताबिक जस्सू के पास किसी भी प्रकार की कृषि भूमि नहीं थी, मतलब वह किसान ही नहीं थे। जनदर्शन में मुकेश बेलचन्दन, हिमा साहू, कृषक जालम पटेल ने भी शिकायत की थी।
कांग्रेस सरकार के आने के बाद भी कार्रवाई नहीं
प्रमुख समाचार पत्रों ने इस खबर को उस समय प्रमुखता से प्रकाशित किया था लेकिन खबर आने से फर्क शायद कांग्रेस सरकार को नहीं पड़ा या बेखबर होकर शासन प्रशासन ने इस मामले को ठंडा कर दिया। आज पर्यंत यह मामला केवल मामला बनकर रह गया। जांच अधिकारियों ने देखा कि इस मामले में तात्कालिक जिला पंचायत अध्यक्ष और तात्कालिक सीईओ व उद्यानिकी विभाग के अफसरो की भूमिका संदेहास्पद रही थी सब फस रहे तो नतीजा ठंडा बस्ते में डाल दिया गया। तात्कालिक अध्यक्ष भी बीजेपी से ही थी।
2018 से प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है उसके बावजूद कोई कार्रवाई इस मामले पर नहीं हो पाई। आखिर किनके संरक्षण में उपरोक्त भ्रष्टाचार से संबंधित नेताओं को वीआईपी सुरक्षा मिल रही है और कार्रवाई से बचाया जा रहा है यह कांग्रेस के लिए चिंतन का विषय है। शीर्ष नेतृत्व को भी इस पर मंथन की आवश्यकता है। दुर्ग जिले में कुछ चुनिंदा भाजपा नेताओं को कांग्रेस सरकार में लगातार संरक्षण मिल रहा है।
शायद दुर्ग जनपद और जिला पंचायत ने नई परीपाटी शुरू की है
दुर्ग जनपद और जिला पंचायत द्वारा शिकायतों को भी अब गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है अब महत्वपूर्ण जानकारियां भी छुपाई जा रही है, तो वही राशियों के गबन के मामले में कार्रवाई में केवल गबन राशि की भरपाई कर रहे हैं संबंधितों के खिलाफ किसी भी प्रकार के अपराध दर्ज नहीं हो रहे हैं एसडीएम न्यायालय में तो हर संभव जनप्रतिनिधि और अधिकारियों को बचाने का खेल भी रचा जा रहा है इसके अनेक उदाहरण है।
ऐसे में उपरोक्त मामले पर जिला पंचायत अब तक क्यों एफ आई आर नहीं करा पाया है यह अभी भी बड़ा सवाल है। बहरहाल इस मामले के आगे के भाग के लिए हमारे साथ बने रहें।