Election News Desk @ Raipur
नेताजी की इस बार की कहानी भी गजब है
जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे नेताजी के दिमाग में तेजी आ रही है पहले वह बिना दिमाग के चलते थे उनके पास दिमाग ही नहीं था जितना दिमाग था दूसरों के पास था खुद के पास दिमाग नहीं था लेकिन चुनाव आते ही दिमागी तौर पर परिपक्व होते नजर आ रहे हैं।
पूरे 5 साल परिवार ने राज किया किसी एक कार्यकर्ता को आगे होने नहीं दिया अपनी शर्तों पर संगठन को अपने इर्द-गिर्द नचाया। बेटों को कमीशन का काम दिया गया। रिंग बनाकर ठेकेदारी की गई काम बनता गया कमीशन खाए गए। मात्र कमीशन नहीं भारी कमीशन खा गए। लोकार्पण भूमिपूजन व अन्य कार्यक्रमों में बेटों को भेजा जाता रहा क्योंकि नेताजी के पास दिमाग और समय दोनों कम था नेताजी अपने आप को चतुर चालाक मानते थे लेकिन दिमागी तौर पर उतना मजबूत नहीं थे इसीलिए उम्र का तकाजा और कई सारे कामों का बोझ देखकर बेटों को भार सौंप दिया गया।
बेटे भी कम नहीं थे बाकायदा पिताजी के आज्ञा को शिरोधार्य कर ठेकेदार, अफसर के साथ शानदार व्यवहार तो वहीं कार्यकर्ता, संगठन के साथ, पार्टी के साथ बदतमीजी भरा व्यवहार रखा गया।
नेताजी यह सब देखकर मन ही मन बेहद खुश होते थे उन्हें मजा आता था क्योंकि किस्मत से जीतना हर किसी की किस्मत में नहीं होता। नेताजी को तब समझ आया जब चुनाव नजदीक थे तो कहा गया कि जो गलती हो गई है उसके लिए मैं माफी मांगता हूं जो कुछ कहना है आप डायरेक्ट मुझे कहो। पूरे 5 साल जन्मदिन की बधाइयां सहित छोटे-छोटे तीज त्योहार में भी पुत्रों के बड़े-बड़े फोटो लगाए गए कार्यक्रम, जन्मदिन तक मनाए गए। परिवारवाद का आरोप जब लगा तो कहने लगे मेरा बेटा नहीं मैं चुनाव लड़ूंगा पार्टी ने टिकट दे दी नेताजी मैदान में है अब बेटों को थोड़ा दूर किया जा रहा है नातियों पोतों को लाया जा रहा है। यहां तक की बेटों के फोटो को ही बैनर पोस्टर से ही गायब कर दिया गया है। कार्यकर्ता लेकिन बेटों के जिंदाबाद के नारे जरूर लगा रहे हैं नेताजी के लाख कहने पर भी बेटे सामने आ जा रहे हैं आए भी क्यों ना क्योंकि आने वाला वक्त उन्ही का है परिवार से मिली राजनीति जो इतने काम की है लोगों की सेवा करने के लिए आगे आना ही चाहिए। सेवा करने का मौका किसी कार्यकर्ता के हाथ भले न लगे लेकिन बेटा इस मौके को भुना लेना चाहता है।
नाती पोतों के भी गजब संस्कार
नेताजी के बेटों की कहानी पूरे क्षेत्र में चर्चित है और उन पर एक उपन्यास भी लिखा जा सकता है लेकिन उसे कहानी समझ कर नेताजी भूलने कह रहे हैं। अभी कुछ दिन पहले ही उनके नातियों ने एक वाहन पलटा दिया था। सत्ता का नशा शराब के नशे से ज्यादा खतरनाक था शराब का नशा तो उतर जाता है लेकिन सत्ता का नशा उतरता नहीं है। यह सब नाती पोतों के लिए भी जरूरी था उन्होंने भी अपने पिता चाचा के नक्शे कदम पर चलकर फिल्म बनाने की सोची थी। ऐसे नेताजी जो अब किसी के पैर नहीं छु पा रहे हैं शायद कमर में तेज दर्द होगा। बेटे भी ले देकर पैर छूते हैं अच्छा वे तो खुद ही पैर पड़वाते हैं। नाती पोतों ने भी सोचा शायद की हमारे भी पैर पड़े जाएंगे लेकिन नाती पोतों में भी गजब के संस्कार दिखे कुछ कार्यकर्ताओं को छोड़कर किसी बड़े कार्यकर्ताओं के पैर नाती पोते नहीं छूते, यह भी गजब के ही संस्कार है।
दुनिया को उपदेश देने वाले नेताजी खुद के घर में उपदेश के पालन नहीं होने से परेशान है। उनका बात ना कोई सुनता है ना कोई समझना चाहता है इस बार के चुनाव जीतने पर भी नेताजी के यहां से नेताजी शासन नहीं करेंगे चलनी तो बेटों की ही है लगे हाथ नाती पोतों का भी नंबर आ गया है। अब कार्यकर्ता उनके भी पैर पड़ लेंगे। इस कहानी का सारांश यह है कि की नेताजी के नाती पोते भी ठेकेदारी करने लगे हैं कार्यकर्ताओं के लिए इस 5 साल में तो शायद ही कुछ बचेगा जो कुछ बचा है अब नाती पोते भी उड़ा लेंगे चिंता तो नौजवान को करनी चाहिए जिसका ई पंजीयन करके ठेकेदारी में लाखों रुपए नुकसान में गए हैं उसकी भरपाई कौन करेगा नेताजी तो नहीं करने वाले हैं क्योंकि नेताजी ने बहुत विकास कराया है इसलिए आपकी कंगाली का जवाबदार नेताजी नहीं है आप खुद हैं आपको समझना है।