Neemuch News: नीमच जिले में एक बरगद का पेड़ है, जिसे लोग जल्लाद पेड़ भी कहते हैं। 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों ने इस पेड़ पर 27 क्रांतिकारियों को एक साथ फांसी दी थी। इतिहासकारों का कहना है कि 3 जून 1857 को पहली गोली अंग्रेजों को खिलाफ नीमच में ही चली थी।
नीमच: मध्य प्रदेश के नीमच जिले में एक बरगद का पेड़ है, जिसे जल्लाद पेड़ भी कहा जाता है। आजादी के आंदोलन के समय अंग्रेजों ने इस पेड़ पर 27 क्रांतिकारियों को फांसी दी थी। उस पेड़ के कुछ हिस्से नीमच जिले में आज भी सुरक्षित है। इस पेड़ की रक्षा आर्मी, नेवी और एयरफोर्स से रिटायर्ड लोग करते हैं। कहा जाता है कि आजादी की लड़ाई के दौरान पहली गोली यही चलाई गई थी। बड़ी संख्या में लोग इस पेड़ को यहां देखने भी आते हैं। साथ ही खास मौकों पर कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
नीमच जिले में इस जगह को शहीद स्मारक नाम से जाना जता हैं। 26 जनवरी, 15अगस्त सहित अन्य राष्ट्रीय त्योहारों पर यहां देश के विभिन्न सेनाओं में शहीद हुए वीर सैनिको को श्रद्धांजलि दी जाती है। दरअसल, 1857 में देश की आजादी के लिए पहली बार यहीं से एक सशक्त आवाज उठी थी। उस समय हुई क्रांति में मध्यप्रदेश-राजस्थान में पहली आवाज नीमच से उठी थी। कहते हैं कि 03 जून 1857 को नीमच से पहली गोली चली थी, लेकिन बाद में इस क्रांति को दबा दिया था।
फांसी पर लटका दिया
क्रांति दब जाने पर अंग्रेजों ने आजादी के लिए आवाज उठाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी पर लटकाया था। इतिहासकार बताते हैं कि किसी को तोप के मुंह पर बांधकर उड़ा दिया गया था। वहीं, कुछ लोगों को एक साथ यहां स्थित बरगद के पेड़ पर फांसी दे दी गई थी। इस पेड़ के आसपास ऐसी तस्वीर भी बनाई गई है। ताकि क्रांति की यादें हमेशा लोगों की जेहन में जीवित रहे।
पूर्व सैनिक करते हैं इसकी देखभाल
इस पेड़ की हिफाजत करने वाले पूर्व सैनिक कमलेश नलवाया ने नवभारत टाइम्स.कॉम से बात करते हुए कहा कि फांसी की सजा पाने वाले सैनिकों में रामरतन खत्री, प्यारे खान पठान, केसर सिंह बैंस, दिलीप सिंह जैसे कई नाम महत्वपूर्ण हैं। इसकी देखरेख के लिए हम पूर्व सैनिक संकल्पित हैं। विजय और शौर्य दिवस के मौके पर यहां बड़े कार्यक्रम होते हैं। बड़ी संख्या में शहर के लोग आते हैं।
नीमच के इतिहास की इस घटना पर जिले के शिक्षाविद डॉ सुरेंद्र सिंह शक्तावत ने एक किताब लिखी हैं। इसका विमोचन मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने किया हैं। इस किताब में नीमच के इतिहास से जुड़ी और स्वतंत्रता की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का उल्लेख हैं। इसी किताब में स्वतंत्रता की पहली गोली चलाने के उल्लेख किया हैं।
भागते फिरे अंग्रेज
सुरेंद्र शक्तावत ने कहा कि क्रांतिकारियों के खौफ से नीमच में अंग्रेज भागते फिरे। वह जंगलों में छिपकर रहते थे। अंग्रेजों ने यहां वनवासी जैसा जीवन काटा था। जब आजादी की लड़ाई धीमी पड़ी तो अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों को कुचलना शुरू कर दिया। नीमच में 27 क्रांतिकारी प्रमुख रूप से फांसी के फंदे पर चढ़े। उन्होंने कहा कि मूल पेड़ 1977 के करीब बारिश और आंधी की वजह से गिर गया था। इसके बाद उसकी एक शाखा को पास में ही लगा दिया गया। साथ ही एक मंदसौर में लगा दिया गया है। अब वह शाखा विशाल पेड़ का रूप ले चुका है।