Gulab @ Raipur Chhattisgarh
विधानसभा चुनाव में नामांकन प्रक्रिया का दौर चल रहा है जो कुछ दिन बाद थम जाएगा पहले चरण का मतदान 7 नवंबर को होना है जिसकी नामांकन प्रक्रिया पहले ही खत्म हो चुकी है इस बीच छत्तीसगढ़ के किस्मत के भरोसे जीतने वाले एक नेता जी की हालत इस बार पतली नजर आ रही है।
क्षेत्र में चर्चा का विषय है की नेता जी के बारे में कैसे कोई अच्छी खबरें नहीं आ रही है वे विकास का ढिंढोरा पीट रहे थे हर बार अच्छी-अच्छी खबरें आ रही थी, लेकिन अब चुनाव का दौर है तो उनके लिए कोई अच्छा लिख नहीं रहा है, आखिर लिखे भी क्यों जब उन्होंने खुद इतने अनुभवी होने के बावजूद सड़क छाप, विज्ञप्ति छाप पत्रकार चुन लिया।
वह हर अखबार में खबरें छाप देता था इतना सस्ते में काम कोई नहीं कर रहा था जो बोलते थे वह छप जाता था जैसा छपवाना चाहे वह छप जाता था,पूरे 5 साल उन्होंने एक अवैध कब्जाधारी कथित पत्रकार को शरण दिया हर साल 5 से 6 लाख रुपए से ज्यादा के विज्ञापन के लिए दिए। अनुदान राशि सो अलग।
उन्होंने बकायदा अपना मीडिया प्रभारी भी उसी के एक साथी को रख लिया वह पहले किसी वेब पोर्टल वगैरह में काम करता था जिसके चलते नेताजी ने अपने यहां सेवक के रूप में रख लिया।
पैसा, पावर, पत्रकार लेकिन फायदा क्या?
नेताजी ने एक को अपने यहां सरकारी पैसों के भुगतान के एवज में ही नियुक्ति दे दी।एक ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं था खबर बस छाप सकता था तो उसे अलग-अलग अखबारों में छापने का जिम्मा मिल गया इसके एवज में दोनों ने खूब पैसे कमाए ज्यादा पैसा तो बंगले वाले ने कमाया। हाउस से बैठकर सरपंचों को फोन किया जाता था विज्ञापन भेज दो जनपद जिला पंचायत को भी फोन किया जाता था इसमें सेवक जी का कमीशन रहता था हाउस से बैठकर धौंस जमा कर फूल वसूली की गई।
यहां तक की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, पोर्टल और प्रिंट मीडिया में भी मैनेज करने का काम दिया गया। नेताजी नहीं जानते थे उसके हुनर को पहचानते नहीं थे लेकिन उन्हें लगा कि वह हुनरमंद आदमी है। अपने किसी खास को हटाकर आखिर रखा भी था, तो इसको कैसे हटाते सगा भी था। पहले वाला भी सगा ही था लेकिन नेताजी के लिए कहा जाता है “ऐसा कोई सगा नहीं जिसको उसने ठगा नहीं।”
कई आयोजन में खूब पैसे कमाए गए तथाकथित अवैध कब्जाधारी पत्रकार को विज्ञापन के लिए प्रतिवर्ष 5 से 6 लाख रुपए दिए गए वह पत्रकार भी चारों तरफ ढिंढोरा पीटता था मेरी नेताजी तक पहुंच है। गाली भी सुन लेते थे बेहद गाली गलौज उनके साथ होती थी उसको भी यह लोग सह लेते थे ऐसे लोग मिलेंगे कहां आपको??
बात यहां पैसों की ही नहीं है अगर आपको पैसा दिया गया है तो आप अच्छा लिख भी सकते हैं आप लिख क्यों नहीं रहे हैं, पता चल रहा है अन्य दल से भी पैसा ले रहे हैं, और उनका काम भी वही है। वह जीवन भर दलाली खाएं हैं तो इस बार भी दलाली खानी थी सब दलों से खाया जा रहा है और नेताजी को लग रहा है कि वह तो हमारा आदमी था अब आदमी बचा ना लेखनी बची, सब डूब गया पानी में।
एक भी ऐसी खबर नहीं जिसमें कब्जाधारी द्वारा द्वारा नेताजी का गुणगान किया हो ।हर खबर में ऊपर से गुणगान करवाया जाता था उसको छाप दिया जाता था ऐसे व्यक्ति को इतना पैसा देकर नेताजी ने क्या कमाया। इतना अच्छा परिवार का स्तर, पढ़ाई का स्तर, नौकरी का स्तर उसके बाद भी इतना गिरकर लोग कई पत्रकारों के साथ भेदभाव किए।अब उनके साथ भेदभाव होने लगा है तो उन्हें बुरा लग रहा है भेदभाव तो आपने पूरे 5 साल की है, नेताजी ने उसको संरक्षण भी दिया उनके घर को टूटने नहीं दिया एसडीएम को बोलकर रुकवाया गया। लेकिन वह अवैध कब्जाधारी नेताजी के लिए काम ही नहीं कर पा रहा है नेताजी ने उन्हें क्या नहीं दिया उनकी औकात से भी ज्यादा दे दिया।
शायद नेताजी ने उनकी डिग्री नहीं देखी थी जिसके चलते आंख मूंद कर उसे तथा कथित पत्रकार का उपयोग कर रहे हैं ऐसा सोचकर आज खुद उपयोग हो रहे हैं।
हाल ही में 5000 देकर उपकृत किया गया
नेताजी की बात ही निराली है उन्होंने लाशों पर भी विज्ञापन दिए अपने हरदिल अजीज लोगों की मौत पर बड़े आयोजन करवा उसमें भी विज्ञापन दिया , साल का हिसाब निकले तो 10 लाख रुपए से ज्यादा का विज्ञापन नेता जी के भरोसे ही मिले। वैसे नेताजी अखबार के कार्यालय में भी संपर्क कर सकते थे लेकिन उन्होंने एक एजेंट चुना जिसके चलते मुख्य धारा के पत्रकारों को हीन भावना महसूस होने लगी इसका भी ध्यान नेताजी ने नहीं रखा, अब चुनाव का वक्त है मुख्य धारा, वेब पोर्टल, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकार नाराज होने लगे हैं, नेताजी के लिए कोई अच्छा लिखना नहीं चाहता नेताजी करोड़ फूकना चाहते हैं, फिर भी कोई अच्छा नहीं लिखना चाहता।
अभी हाल ही में उन्होंने अपने क्षेत्र के पत्रकारों को बुलाया और पत्रकारों को भविष्य दिखाई और कहा कि यह लीजिए आपका भविष्य 5000 का लिफाफा, यही आपका भविष्य है बाकी दिवाली में आपका वर्तमान दिख जाएगा।
इस बैठक में भी कुछ चुनिंदा लोगों को छोड़ दिया गया उन्हें नहीं बुलाया गया।मौके तो बहुत थे नेताजी के पास की सबको मना लिया जाए लेकिन नेताजी आंख मूंदकर विज्ञप्ति छाप पत्रकार पर ही भरोसा करते रहे।
अभी नेताजी दो पत्रकारों से बेहद परेशान है उनका तोड़ नहीं निकल रहा है निकले भी क्यों? आपने उन दोनो की भी उपेक्षा की।एक पत्रकार का घर तुड़वा दिया एक को आप घर से निकालना चाहते हैं यह कैसी राजनीति है नेताजी? पत्रकारों को मान सम्मान की जरूरत होती है पैसों की नहीं इस बात को आप कब समझ पाएंगे।
वैसे एक बात और कब्जाधारी ने पहले भी एक नेता जी के बारे में पूर्व कार्यकाल में लिखते थे उनसे भी 25000 साल में दो बार अनुदान लेते थे विज्ञापन लेते थे उनकी टिकट कट गई थी क्योंकि उसका भी गुणगान खुद से नहीं कर पाते थे दरबारी जरूर थे लेकिन राग दरबारी नहीं थे।