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कर्नाटक और तेलंगाना में जीत के बाद कांग्रेस का फोकस आंध्र प्रदेश पर, ऐसी है तैयारी

कांग्रेस को लगता है कि इस साल पहले कर्नाटक और फिर हाल ही में तेलंगाना जैसे दक्षिणी राज्यों में जीत का असर आंध्र प्रदेश में भी पड़ेगा। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस को लगता है कि आंध्र प्रदेश में लेफ्ट दलों के साथ गठबंधन हो सकता है, जो केंद्रीय स्तर पर पहले ही इंडिया गठबंधन का हिस्सा है।

नई दिल्ली : आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस में इन दिनों अलग-अलग प्रदेश के नेताओं से केंद्रीय नेतृत्व का लगातार संवाद व चर्चा जारी है। बुधवार को कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने आंध्र प्रदेश के नेताओं से मुलाकात की। आंध्र प्रदेश को लेकर मीटिंग में कांग्रेस का जोर जहां एक ओर प्रदेश में खोया जनाधार लौटाने पर रहा, वहीं दूसरी ओर इस पर भी मंथन हुआ कि समान विचारधारा वाले दलों के साथ तालमेल की गुंजाइश कितनी व कैसी है। उल्लेखनीय है कि आंध्र प्रदेश में लोकसभा के साथ ही प्रदेश विधानसभा के चुनाव होने हैं। तीन घंटे तक चली मीटिंग में दोनों ही चुनावों को लेकर आगामी रणनीति पर चर्चा हुई। जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे व पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, संगठन महासचिव के सी वेणुगोपाल की मौजूदगी में प्रदेश के प्रभारी माणिकम टैगोर व प्रदेशाध्यक्ष जी रुद्र राजू सहित तमाम नेताओं ने भाग लिया।

बैठक के बाद जहां खरगे ने इसे एक महत्वपूर्ण रणनीति बैठक करार देते हुए सोशल मीडिया पर लिखा कि बैठक में नेताओं ने आम चुनाव के लिए पार्टी को मजबूत करने पर अपने विचार साझा किए। खरगे का कहना था कि हर कोई मानता है कि कर्नाटक और तेलंगाना में सरकार बनने के बाद जमीनी स्थिति में काफी बदलाव आया है। हर नेता और कार्यकर्ता कड़ी मेहनत करेगा और हम उस रिश्ते को फिर से स्थापित करेंगे, जो आंध्र प्रदेश के लोगों ने एक बार कांग्रेस पार्टी के साथ साझा किया था। दूसरी ओर इस बैठक के बाद प्रदेश के प्रभारी माणिकम टैगोर का कहना था कि हम कांग्रेस की विचारधारा में विश्वास करने वाले सभी लोगों को आंध्र प्रदेश के पुनर्निर्माण के लिए पार्टी में शामिल होने के लिए आमंत्रित करते हैं।

उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी सरकार के भेदभाव के चलते एक सपना अधूरा रह गया। पिछले 10 सालों में केंद्र के अधूरे वादों ने आंध्र प्रदेश के विकास को नष्ट कर दिया है। टैगोर ने पुरजोर तरीके से कहा कि कांग्रेस 2024 की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार है। टैगोर का कहना था कि बैठक में सीट बंटवारे पर कोई चर्चा नहीं हुई, लेकिन इस बारे में जो भी फैसला होगा, वह आलाकमान लेगा। उल्लेखनीय है कि 2014 के आंध्र बंटवारे के बाद कांग्रेस को अंदेशा था कि उसे वहां के लोगों की नाराजगी को झेलना होगा। कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहे आंध्र प्रदेश में पार्टी का जनाधार बेहद कम हुआ है। इस बार कांग्रेस की कोशिश अपने जनाधार को बढ़ाने की है।

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस ने इसके लिए 15 फीसदी का लक्ष्य रखा है। कांग्रेस को लगता है कि एक दशक में जहां आंध्र प्रदेश के लोगों की नाराजगी कुछ कम हुई है, वहीं दूसरी ओर वहां के लोगों ने वाईएसआर कांग्रेस पांच साल के शासन और मोदी सरकार के दस साल के शासन को देखा है। कांग्रेस का मानना है कि बंटवारे के मौके पर कांग्रेस ने बतौर केंद्र सरकार विकास के जो वादे किए गए थे, उसे पूरा करने में मौजूदा पीएम मोदी नीत केंद्र सरकार नाकाम रही है। वहीं वाईएसआर कांग्रेस ने भी पिछले पांच सालों में बीजेपी का हाथ पकड़कर अपने अधिकारों की लड़ाई को अधूरा छोड़ा है, जिसे आंध्र की जनता समझ रही है। प्रदेश के एक सीनियर नेता का कहना था कि राज्य में जगन रेड्डी नीत वाईएसआर कांग्रेस सरकार के प्रति नाराजगी है। कांग्रेस जगन सरकार के प्रति एंटी इनकंबेंसी को अपने पक्ष में देख रही है। कांग्रेस केंद्र में मोदी सरकार और प्रदेश की जगन सरकार के बीच अघोषित आपसी तालेमल को लेागों के बीच ले जाने की योजना बना रही है।

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Author: dhaaranews

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