छत्तीसगढ़ मंत्रिमंडलः विधानसभा चुनाव में जीतकर आने वाली बीजेपी पार्टी ने सरकार बनाने के साथ ही मंत्रिमंडल का गठन करना भी शुरू कर दिया है। इसके चलते पिछले दिनों 9 मंत्रियों ने शपथ भी ली। इसी दौरान सामने आया की 7 दशक तक प्रदेश की राजनीति को बड़े बड़े लीडर देने वाले इलाके से इस बार एक भी मंत्री नहीं चुना गया है।
दुर्गः सियासत और खेल की बाजी कब, कैसे पलटती है कोई नहीं जान सकता। कुछ दिनों पहले तक छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी। इसमें दुर्ग जिले से खुद सीएम भूपेश बघेल समेत दो मंत्री ताम्रध्वज साहू और गुरु रुद्रकुमार मंत्री थे। जबकि अरुण वोरा को राज्य मंत्री का दर्जा मिला था। लेकिन हर दौर में सूबे का ताकतवर जिला रहा दुर्ग। लेकिन इस बार की सरकार बनने पर सियासी गढ़ दुर्ग नहीं रहा। पिछले सात दशक में पहली बार ऐसा हुआ है, जब दुर्ग जिले से किसी को मंत्री नहीं बनाया गया है।
दरअसल, प्रदेश की पॉलिटिक्स में दुर्ग जिले का काफी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। यह जिला एमपी से अलग होने से पहले भी राजनीति में अपना अहम किरदार निभाता आया है। यह प्रदेश का ऐसा जिला है जहां से 7 दशकों की राजनीति में हर बार देश-प्रदेश को कई दिग्गज लीडर दिए है। जो कि समय के साथ राजनीति के टॉप पर पहुंचे है। लेकिन इस बार इसका रुतबा घटा है।
जिले से नहीं बना एक भी मंत्री
दुर्ग जिले में कुल छह विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से भाजपा ने चार में जीत दर्ज की है। इनमें वैशालीनगर से रिकेश सेन, दुर्ग शहर से गजेंद्र यादव, दुर्ग ग्रामीण से ललित चंद्राकर और अहिवारा से डोमनलाल कोर्सेवाड़ा शामिल हैं। इनमें से कांग्रेस के तीन मंत्रियों को शिकस्त दी है। हालांकि पूरे दुर्ग संभाग के नजरिये से देखें तो तीन पद मिले हैं। इनमें राजनांदगांव से चुने गए पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह को विधानसभा अध्यक्ष, कवर्धा से चुने गए विजय शर्मा को डिप्टी सीएम बनाया गया है और नवागढ़ से चुने गए दयालदास बघेल को मंत्री पद दिया गया है।
71 सालों के इतिहास में पहली बार घटा कद
आंकड़ों के आईने में देखें तो पता चलता है कि अविभाजित मध्यप्रदेश में 1962 से लेकर 1998 यानी छत्तीसगढ़ राज्य बनने तक 9 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं। वहीं, राज्य बनने के बाद 2000 में बनी पहली सरकार और 2003, 3008, 2018 तक चार बार गठित सरकार में दुर्ग जिले से मंत्री पद का प्रतिनिधित्व रहा। राज्य से लेकर केंद्र तक की राजनीति में दुर्ग का सियासी चेहरा हमेशा अहम रहा है। लेकिन 71 सालों के इतिहास में पहली बार दुर्ग अपनी सियासी स्थिति पर दुखी है।
छत्तीसगढ़ बनने के बाद इन्हें मिली लीडरशिप