
सत्ता के विकेंद्रीकरण और ग्राम के अंतिम व्यक्ति तक विकास की राह पहुंचाने पंचायती राज व्यवस्था की स्थापना हुई। आज 24 अप्रैल है और राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस है।
लेकिन यह बातें सिर्फ स्लोगन और कागज और भाषण देने तक सीमित रह गई है।
बात हो रही है दुर्ग ग्रामीण विधानसभा की तो यहां भी पंचायती राज व्यवस्था की हालत बेहद पतली है।
ग्राम सभा और आम सभा और पंचायत की होने वाली बैठक बैठक तक ही सीमित रह गई है कोरम पूर्ति नहीं होने के बावजूद बैठकें और सभाएं संपादित किए जा रहे हैं।
ग्राम में पंच सरपंच द्वारा की जाने वाली मनमानी जनता जानती है लेकिन जनता 5 साल पूर्ण होने का इंतजार करती रहती है। कहीं अविश्वास प्रस्ताव हो जाता है तो कहीं गिरा दिया जाता है। आम जनता इन सब चीजों के बीच पिसती रहती है।
वैसे लोकतंत्र में चुना हुआ प्रतिनिधि जनता के सेवा के लिए उपलब्ध भले ना हो लेकिन चाटुकारिता करने के लिए विधायक और मंत्री के इर्द-गिर्द घूम खुद ही जनता से दूर हो जाती है फिर 5 साल बाद उन्हें मुंह की खानी पड़ती है या खराब प्रत्याशी के वजह से पुनः चुनाव जीत जाते हैं।
पंचायत के सरपंच अपने खासम खास को काम देने को आतुर रहते हैं लेकिन दुर्ग ग्रामीण विधानसभा का हाल कुछ दूसरा है यहां आलाकमान के कुछ गुर्गे गांव में पहुंच का हवाला देकर खूब काम कर रहे हैं लेकिन वे कर्ज तले ही दबे हैं, गांव के लोगो का काम और रोजगार खाकर भी। कहीं-कहीं तो पंच, उप सरपंच, सरपंच, जनपद जिला के प्रतिनिधि ठेकेदारी कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं लेकिन उनके भी तगादे करने वाले कम नहीं है। कोई मटेरियल का पैसा नहीं दे पा रहा है तो कोई लेबर पेमेंट नहीं दे पा रहा है।
कहीं-कहीं तो निर्माण कार्यों की गुणवत्ता इतनी खराब है कि शिकायत होने पर मंत्री लेवल से फोन करवाना पड़ जाता है और शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं करने का दबाव भी अधिकारियों पर बना दिया जाता है।
पिछले विधानसभा कार्यकाल में सीसी रोड का कार्य पंचायत लेवल पर होता था जिससे सरपंच को चुनाव में लगाया हुआ पैसा वापस मिल जाता था और कार्यकर्ताओं को भी खुश रखने का नसीब रहता था।
लेकिन इस बार 3 गुने महंगे बजट पर सीसी रोड इस विधानसभा में बनाए जा रहे हैं लेकिन सरपंचों के हिस्से खाली हैं। बचा खुचा काम ऊपर से आकर कोई उड़ा ले जा रहा है। कांग्रेसी सरपंच तो 2 साल में ही एंटी इनकंबेंसी का शिकार हो गया है।
गौठान जैसी महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी योजना जिस पर ग्राम सभा में अनुमोदन होकर गौठान अध्यक्ष का नाम गया था उन नामों को बदल कर राजनीति का स्वरूप बदल दिया गया इसलिए गौठान योजना चंदखुरी गांव को छोड़ दिया जाए तो कहीं बेहतर स्थिति में नहीं है।
जनपद सदस्यों को निर्वाचन के बाद किए गए कई वादो में एक राशन दुकान व राजीव युवा मितान क्लब का गठन अधर में लटक रहा है।
कुछ नेताओं पर अपने काम को बेचने का आरोप भी लगा है ऐसे में पंचायती राज व्यवस्था आखिर कैसे सुदृढ़ हो जाएगी??
जब पंच को सरपंच पर सरपंच को जनपद पर व जिला सदस्य पर, व जनपद अध्यक्ष पर, जनपद अध्यक्ष को जिला पंचायत के अध्यक्ष पर, विश्वास ही ना रहे और ये सभी साथ तालमेल ना बैठा पाए तो इस पंचायती राज व्यवस्था का आम जनता कितना लाभ उठा पाएगी यह बड़ा सवाल है।
(लेखक के अपने विचार है, वे दुर्ग ग्रामीण विधानसभा के मतदाता व धारा न्यूज़ वेब पोर्टल के प्रधान संपादक है।)
