दुल्ला भट्टी वाला हिंदू लड़कियों को बेचने का विरोध करता था। वो उन्हें चुपचाप कहीं ले जाकर किसी हिंदू लड़के से उनकी शादी करवा देता था। इस कारण उसे हिंदू परिवारों में बहुत पसंद किया जाता था।
चंडीगढ़: पाकिस्तान के लाहौर में स्थित पंजाब इंस्टीट्यूट ऑफ लैंग्वेज, आर्ट एंड कल्चर (पीआईएलएसी) ने लोहड़ी मनाने के लिए पूरी तरह तैयार है। पीआईएलएसी पश्चिम पंजाब के इस त्योहार को पुनर्जीवित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। लोहड़ी का त्योहार राय अब्दुल्ला खान भट्टी से जुड़ा हुआ है। जिन्हें दुल्ला भट्टी के नाम से जाना जाता है। जो अविभाजित पंजाब के एक मुस्लिम रॉबिन हुड थे। 1947 के बाद मुस्लिम बहुल पश्चिम पंजाब में दुल्ला भट्टी को लगभग भुला दिया गया था। लेकिन भारत में उन्हें अब भी लोहड़ी के दिन याद किया जाता है।
अब पाकिस्तान में कुछ कार्यकर्ता बिक्रमी कैलेंडर के सबसे ठंडे महीने ‘पोह’ की अंतिम रात को पंजाब में मनाए जाने वाले त्योहार लोहड़ी को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, वैशाखी और लोहड़ी पंजाब के सांस्कृतिक त्योहार हैं। इन त्योहारों को न मनाने का मतलब इतिहास से अलग होना है। पूर्व पाकिस्तानी सेना प्रमुख मोहम्मद जिया-उल-हक के सत्ता संभालने के बाद लोहड़ी पाकिस्तान में खो गया था। ‘पंजाबी संगत पाकिस्तान’ के बैनर तले पीआईएलएसी परिसर में लोहड़ी समारोहों का आयोजन करने वाले अली उस्मान बाजवा ने कहा कि वह पाकिस्तान में कई बदलाव लाए, जिससे लोहड़ी और वैशाखी जैसे त्योहार प्रभावित हुए।
दलित लड़की बनाया बहन
उन्होंने बताया कि पाकिस्तान में लोहड़ी का त्योहार विशेष रूप से दलित आबादी के बीच अधिक लोकप्रिय था। एक कहानी है कि दुल्ला अपनी मां लाढ़ी के साथ लाहौर आया था। यहां, उन्होंने एक दलित लड़की के साथ अपना भोजन साझा किया था जो उनकी बहन बन गई। वाल्मीकि लोहड़ी पर जुलूस निकालते थे। वे कुश्ती प्रतियोगिताओं का आयोजन करते थे। अगर गरीब पृष्ठभूमि का कोई व्यक्ति किसी अमीर पहलवान को हरा देता तो वे विजेता को ‘दुल्ला’ कहते थे।
दुल्ला से नफरत करता था अकबर
दुल्ला मुगल राजा अकबर के शासन के दौरान एक विद्रोही था, जिसने उसे मार डाला था। दुल्ला कभी भी सामंती प्रभुओं की कथा में फिट नहीं बैठ सकता था। अंग्रेजों ने भी अकबर का महिमामंडन किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और मुस्लिम लीग अकबर को एक दयालु और महान राजा के रूप में देखते हैं। लेकिन वह वही राजा था जिसने स्मारकों और इमारतों के निर्माण के लिए भारी कर लगाया था। अकबर लोगों के प्रति दयालु नहीं था। पंजाब के किसान उनसे नफरत करते थे।
कौन थे दुल्ला भट्टी
लोककथाओं के अनुसार, दुल्ला का जन्म 16वीं शताब्दी के मध्य में पिंडी भट्टियां गांव में हुआ था, जो अब पश्चिम पंजाब में है। अकबर के आदेश पर दुल्ला के पिता और चाचाओं को मार दिया गया था। उनके शवों को सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए लटका दिया गया था।
दुल्ला भट्टी को क्यों पसंद करते थे लोग
दुल्ला के गैर-मुस्लिम आबादी के बीच अभी भी लोकप्रिय होने का एक कारण एक गरीब ब्राह्मण परिवार की बेटियों के प्रति उनका दयालुतापूर्ण व्यवहार है। उन्होंने बहनों को एक मुगल अधिकारी से बचाया और दोनों बहनों से शादी करने में मदद की। यह प्रसिद्ध गीत ‘सुंदर मुंदरियें हो, तेरा कौन विचार हो, दुल्ला भट्टी वाला हो’ के पीछे की कहानी है। लोहड़ी और दुल्ला भट्टी पंजाब में स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं लेकिन पाकिस्तान में स्कूली पाठ्यपुस्तकों में दोनों का कोई उल्लेख नहीं है। पाकिस्तान में दुल्ला का मानने वाली दलित और वाल्मीकि आबादी धीरे-धीरे ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गई। जिसके बाद उनकी संस्कृति बदल गई और उनकी आने वाली पीढ़ियां भी पश्चिम पंजाब में दुल्ला को भूल गईं।
पाकिस्तान में क्यों मनाई जानी चाहिए लोहड़ी
पाकिस्तान के वकील और लेखक नैन सुख का कहना है कि लोहड़ी एक धर्मनिरपेक्ष और सांस्कृतिक त्योहार है। लोहड़ी हमारी पीढ़ियों को उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करेगी। यह मौसम में बदलाव से संबंधित एक त्योहार भी है। लोहड़ी हमें पंजाब की अर्थव्यवस्था से जोड़ती है। यह सभी पंजाबियों को एकजुट करता है। यह हमें अंग्रेजों से पहले के पंजाब को वापस लाता है। लोहड़ी समाज को विषमुक्त करती है। हमें उम्मीद है कि वह दिन आएगा जब पश्चिमी पंजाब में लोहड़ी मनाई जाएगी जैसा कि पूर्वी पंजाब में मनाया जाता है।