गुलाब @ दुर्ग
कांग्रेस सरकार में 5 साल तक VVIP रहे जिला दुर्ग में 4 – 2 की अप्रत्याशित हार से कांग्रेस को सबक लेना होगा अगर ऐसी स्थिति रही तो लोकसभा चुनाव में फिर गंभीर नतीजे मिलेंगे कांग्रेस इस शिक्षित जिले में पिछड़ गई उसके बहुत सारे कारण है।
बीजेपी का बेहतरीन टिकट वितरण फार्मूला
पूरे दुर्ग जिले में टिकट वितरण के फार्मूले को आप देख कर समझ जाएंगे की किस तरह से बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों को सामने रखा । जबकि कांग्रेस ने वही चेहरे उतारे जो जनता के बीच रिपीटेड और लोकप्रिय नही थी। दूसरी बात कांग्रेस को यह समझना होगा कि भले वह मंत्री हो किसी बड़े नेता का बेटा हो या पांच बार का विधायक हो इन सबसे दूर की सोचना होगा। जनता के बीच कौन लोकप्रिय है उसका सर्वे लोकल इंटेलिजेंस ब्यूरो के पास भी होता है वास्तविक रिपोर्ट लेकर मीडिया सर्वे की तथ्यात्मक बातों को भी ध्यान में रखना चाहिए। पार्टी ने भिलाई नगर में पूर्व मंत्री प्रेम प्रकाश पांडे को उतारा। पूरे जिले में पुराने को भी तवज्जो मिली सतनामी समाज को साधने के लिए डोमनलाल का नाम सामने आया सतनामी समाज उनके नाम पर पहले ही मुहर लगा दिया। दुर्ग जिले में साहू समाज को टिकट नहीं मिला इसके एवज में साजा विधानसभा में देकर बड़ा गणित खेला गया जो दुर्ग के बहुत हिस्से में शामिल है।कुर्मी समाज से दो प्रत्याशी दुर्ग ग्रामीण और पाटन, एक वैशालीनगर से निर्वाचित जनप्रतिनिधि को दिया। दुर्ग शहर से यादव समाज को भी साध लिया गया जिसका पूरे दुर्ग जिले में प्रभाव पड़ा।
दुर्ग शहर में क्या हुआ
पूरे शहर में अरुण वोरा के प्रति नाराजगी थी कांग्रेस संगठन के कई लोगों ने दावेदारी ठोकी थी कई चेहरे थे जो नए थे जिनका पूरे दुर्ग में कोई विरोध नहीं होता लेकिन गजेंद्र यादव जिनकी छवि सरल स्वभाव की थी संगठन के आंदोलनों में भले कोई नेतृत्व ना रहा हो लेकिन कांग्रेस द्वारा एक ही व्यक्ति को लगातार देने से पूरे दुर्ग में पारिवारिक विरोध था जिसे जानकर भी कांग्रेस ने टिकट दिया जिसका परिणाम सामने है। यहां कांग्रेस को नया चेहरा उतारना था।
दुर्ग ग्रामीण में क्या हुआ
दुर्ग ग्रामीण विधानसभा में भाजपा ने 20 साल से मेहनत कर रहे महामंत्री नया चेहरा ललित चंद्राकर को टिकट दिया इसके उलट कांग्रेस ने प्रदेश के दूसरे नंबर के घिसे पीटे चेहरे और मंत्री ताम्रध्वज को टिकट दिया। एंटी इनकंबेंसी पहले क्षेत्र में रही ललित का क्षेत्र में कोई विरोध नहीं था। कुर्मी समाज एकजुट हुआ साहू समाज में मंत्री जी का अंतर विरोध भी था।पार्टी के कई गतिविधियों में ललित चंद्राकर का हिस्सा लेना और उनका सरल, सौम्य छवि जनता के बीच कहीं भी चाय पी लेना क्रिकेट, कबड्डी में पहुंच जाना। उसके ठीक उलट कांग्रेसी प्रत्याशी के पारिवारिक विरोध, व्यक्तिगत भ्रष्ट छवि निर्मित हो जाना, भाजपा प्रत्याशी के मुकाबले क्षेत्र की जनता के बीच अत्यंत ही कम विनम्रता से पेश आना पूरे 5 साल पारिवारिक दबदबा प्रशासन में बनाए रखना और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की अवहेलना ने 16000 से ज्यादा के अंतरों से हरा दिया।
अहिवारा की सीट में क्या हुआ
यहां कांग्रेस के लिए चेहरा नया था लेकिन कुछ भी हो विनम्रता का भाव भाजपा प्रत्याशी में ज्यादा रहा कांग्रेस प्रत्याशी निर्मल कोसरे मुख्यमंत्री बघेल से घनिष्ठ होने के बावजूद सामाजिक दबदबा कायम नहीं कर पाए। वे अपना व्यवहार भी भूले।भाजपा ने पुराने चेहरे पर दाव खेला कांग्रेस ने नया चेहरा दिया लेकिन दुर्ग ग्रामीण का जिला अध्यक्ष रहते हुए निर्मल कोरे संगठनात्मक रूप से कोई विशिष्ट प्रभाव नहीं डाल पाए थे जिनका खामियाजा उन्हें अपने चुनाव में भुगतना पड़ा। डोमन लाल कोरसेवाड़ा का टिकट फाइनल होते ही पूरे ग्रामीण क्षेत्रों में उनके नाम पर ही मोहर लग गई थी जिसे कांग्रेस भाप नहीं पाई। दूसरा कांग्रेस के पूर्व विधायक रूद्र गुरु क्षेत्र में लोगों को समय ही नहीं दे पाए और पहले से ही गड्ढा करके चले गए।
वैशाली नगर विधानसभा
पांच बार के पार्षद रहे रिकेश सेन ने कांग्रेस के मुकेश चंद्राकर को पटखनी क्यों दे दी उसको जानने के लिए आपको संगठन में जिला अध्यक्ष रहते हुए मुकेश चंद्राकर द्वारा क्या अच्छा काम किया गया या संगठन के लोगों से कैसा रिश्ता निभाया गया इसको देख लेना ही काफी होगा सोशल मीडिया में सक्रिय होना ही काफी नहीं होता बल्कि लोगों से डायरेक्ट जुड़ना अलग बात है। वैसे भी वैशाली नगर विधानसभा में भारी मात्रा में कांग्रेसी प्रत्याशियों ने अपना बायोडाटा जमा किया था उनके मुकाबले में मुकेश चंद्राकर बहुत ही फीके थे उसके बावजूद उन्हें टिकट दिया गया। मुख्यमंत्री का एक धड़ा उनके चुनाव मैनेजमेंट में सक्रियता से लगा था लेकिन परिणाम कांग्रेसियों के अंतरकलह ने उजागर कर दिया।
कांग्रेस के पास अब क्या
अभी कांग्रेस के पास पाने के लिए बहुत कुछ है आगामी लोकसभा चुनाव है तो लगभग साल भर में पंचायत चुनाव, शहरी चुनाव का बिगुल बज जाएगा। लोकसभा चुनाव में पिछले बार भाजपा ने कई लोगों की टिकट काट दी थी ऐसा रिस्क कांग्रेस को भी लेना पड़ेगा। जनता के बीच पकड़ होनी चाहिए दिल्ली दौड़ लगाने वालों से ज्यादा जनता के बीच रहने वाले प्रत्याशियों को जगह मिलनी चाहिए। चुनाव में लोग पार्टी सरकार की घोषणाओं, योजनाओं से ज्यादा व्यक्तिगत छवि मिलनसार नेता को लोग ढूंढते हैं अंततः वही काम आता है।निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी संगठन के फैसलों को भी अपने अहंकार और स्वार्थ से परे होकर स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए।
निर्वाचित विधायको और मंत्री के रवैयों पर अंकुश लगाना
कांग्रेस में संगठन का महत्व पूरे 5 साल कम रहा या जो संगठन में रहा और बड़े पद में रहा व निरंतर मनमानी करते रहे निर्वाचित जनप्रतिनिधि बड़े नेता, मंत्री, विधायक जैसा चाहे वैसा काम करते रहे उन पर लगाम लगाने के लिए संगठनात्मक तौर पर किसी भी प्रकार के अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रस्ताव ही नहीं आया। संगठन सर्वोपरि है यह सोचना होगा। कोई भी प्रत्याशी चयन के वक्त मुख्यमंत्री की पसंद या प्रदेश अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष की पसंद से ज्यादा जनता की पसंद और संगठन के अंतिम व्यक्ति के पसंद को महत्व देना होगा।