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भूपेश का छत्तीसगढ़ीयावाद, किसान और ओबीसी हित चुनाव जीता लेकिन मंत्रीयों का अहंकार चुनाव हारा

राजनीतिक विश्लेषक @ विकास कुमार

राज्य गठन के 18 साल बाद कांग्रेस प्रचंड मतों से चुनाव जीती थी जिसके पश्चात् किसान पुत्र, छत्तीसगढ़ीया संस्कृति को जीने वाले ओबीसी वर्ग के भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाया गया,जिसने कर्जा माफी, गोबर खरीदी और समर्थन मूल्य को बढाकर मात्र पांच साल में किसानों को आर्थिक रूप से सम्पन्न कर दिया, आज किसान धान बोवाई, तीजा तिहार और देवारी तिहार के खर्चे के लिए गहना गिरवी रखने किसी ज्वेलर्स के पास जाने वाले किसानों की संख्या एकदम कम हो गई है। हरेली तिहार को राज्य की पहचान बनाने वाले भूपेश बघेल ने तीजा, गौरा-गौरी, गोवर्धन पूजा, अकती तिहार को जन जन तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई, आज छत्तीसगढ़ीया -छत्तीसगढ़ी बोलने में शरम महसूस नहीं करते जिसका पूर्ण रूप से श्रेय सिर्फ भूपेश बघेल को जाता है।आरक्षण किसी समस्या का समाधान नहीं लेकिन हर वर्ग को सामान प्रतिनिधित्व प्रदान करने का माध्यम है जिसके तहत 27% आरक्षण के मुद्दे को आगे बढ़ाकर गांव गांव से नेतृत्व क्षमता निकालने में सफल रहे। इन तीन बड़े मुद्दों के बावजूद कांग्रेस सरकार चुनाव हार चुकी है जिसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया भूपेश के छत्तीसगढ़ीयावाद की हार और भाजपा के राष्ट्रवाद की जीत बता रही है अगर इस बात पर मनन किये बिना, छत्तीसगढ़ीयो ने इसे स्वीकार कर लिया तो आने वाले चुनाव में कोई भी राजनितिक दल या छत्तीसगढ़ का नेता इस मुद्दे को उठाने की हिम्मत नहीं करेगा और छत्तीसगढ़ीया संस्कृति, किसानों के आर्थिक समृद्धि और ओबीसी वर्ग के नेतृत्व गुण को निखारने की बात कोई भी नहीं करेगा।

भूपेश की जीत पर मंत्रियों की हार

इस चुनाव के मुख्य मुद्दे को ध्यान से देखा जाय तो पूर्ण रूप से क़ृषि पर निर्भर रहने वाले, छत्तीसगढ़ी संस्कृति को मानने वाले क्षेत्रो में कांग्रेस के 35 प्रत्याशीयों ने चुनाव जीते है जबकि शहरी क्षेत्रो में ज्यादातर विधायक चुनाव हारे है, इससे यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है की छत्तीसगढ़ीयावाद और किसान हित के मुद्दे ने भूपेश बघेल के ऊपर अपना विश्वास और समर्थन कायम रखा है। मंत्रियो के क्षेत्रो में जनता ने भूपेश बघेल के ऊपर तो विश्वास जताया लेकिन मंत्रियो के अहंकार, कार्यकर्ताओ को उचित सम्मान ना देने और स्वयं को राजा समझने की भूल ने 9 सीटों का नुकसान पहुंचाया, अगर मंत्री सिर्फ अपने विधानसभा क्षेत्रो में ही पर्याप्त मेहनत करते और कार्यकर्ताओ को उचित सम्मान देते तो भूपेश बघेल 44 सीटों तक पहुंच सकते थे , मुख्यमंत्री बनने का ख्याब संजोये टी. एस.सिंहदेव के बड़बोलेपन ने उनका खुद का पद भी छीन लिया जो पिछले चुनाव में 14 सीट एकतरफा लेकर आये थे, उनमे से सिर्फ पांच सीटों का भी ठीक से संचालन कर पाते तो लगभग 50 सीट के साथ भूपेश बघेल की स्पष्ट सरकार बन सकती थी। इस तरह अगर सभी आंकड़ों को ध्यान से देखा जाय तो भूपेश बघेल के मुद्दों की नहीं मात्र मंत्रियो की हार है।

शराब बंदी के मुद्दे से महिलाओं का कांग्रेस से मोह भंग

भाजपा के महतारी वंदन योजना से निश्चित रूप से लाभ हुआ है जो शहरी क्षेत्रो में अधिक प्रभावशील रहा जहाँ भाजपा हमेशा प्रभावशाली रही है। जबकि धान पर पूर्ण रूप से निर्भर रहने वाले क्षेत्रो में इसका प्रभाव शहरों और मंत्रियो के क्षेत्रो की अपेक्षा कम नजर आ रहा है। जहाँ महतारी वंदन योजना की सफलता दिख रही है उसका कारण सिर्फ परिवार के मुखिया के खाते में पैसा आने के कारण अधिकतर पैसा-शराब में खर्च करने तथा महिलाओ के साथ गाली गलौच, मारपीट तथा पैसो के लिए पुरुषो पर निर्भर रहने के कारण, महतारी वंदन योजना में आर्थिक स्वतंत्रता की उम्मीद ने शायद महिलाओ के आत्मसम्मान को झकझोर दिया। रोज 200 रूपया शराब में खर्च करने वाले पुरुष अपनी पत्नी और बच्चों के लिए 50 रुपये का फल- मिठाई लेकर भी नहीं आते। क्या यह महिलाओ के विद्रोह का कारण तो नहीं है, इस पर विचार करने की जरूरत है, शायद शराब बंदी से इस समस्या का समाधान किया जा सकता था  जिससे कॉंग्रेस और भूपेश बघेल को अधिक लाभ मिलने की सम्भावना बन सकती थी।

बीजेपी छत्तीसगढ़िया वाद को ताक पर नही रख पाएगी

जिस तरह से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के द्वारा भूपेश बघेल के छत्तीसगढ़ीयावाद की हार को बार-बार दिखाया जा रहा है उससे केवल कोंग्रेसियो को नहीं बल्कि भाजपाइयों को भी नुकसान होने की सम्भावना है। 15 साल के शासन में भाजपा सरकार में गैर छत्तीसगढ़ीयो को अधिक महत्व दिया जाता रहा है जबकि इस चुनाव में मूल छत्तीसगढ़ीयो को मंत्री के साथ-साथ मुख्यमंत्री पद का भी दावेदार बताया जा रहा है, इस तरह यह स्पष्ट है की छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी संस्कृति, किसानों की आर्थिक समृद्धि और ओबीसी वर्ग के नेतृत्व क्षमता को ऊपर उठाने में भूपेश बघेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। जिसे बचाने की जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ीया कोंग्रेसियो के साथ-साथ छत्तीसगढ़ीया भाजपाइयों की भी जिम्मेदारी है।

(नोट: लेखक विकास कुमार छत्तीसगढ़ी समाज और छत्तीसगढ़ के बारे में अच्छी पकड़ रखते हैं यह उनके अपने विचार है।)

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