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स्पेशल रिपोर्ट- 17 : चुनाव-2023 : बस्तर संभाग की 12 सीटों का आंकड़ों के साथ जानिए पूरा समीकरण, कई सीटों में बदले चेहरे, नए पर दांव

रायपुर. छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव दो चरणों में हो रहा है. पहले चरण में 20 सीटों के लिए 7 नवंबर को मतदान है. पहले चरण में दुर्ग संभाग अंतर्गत आने वाली 8 और बस्तर संभाग अंतर्गत आने वाली 12 सीटें शामिल हैं. पूर्व की रिपोर्ट में दुर्ग संभाग की 8 सीटों का समीकरण आप पढ़ चुके हैं, इस रिपोर्ट में बात बस्तर संभाग की 12 सीटों की.

बस्तर संभाग की 12 सीटों में भाजपा और कांग्रेस दोनों ने कई सीटों पर अपने प्रत्याशियों को बदला है. कांग्रेस ने तीन मौजूदा विधायकों को ही बदल दिया है. 2018 में कांग्रेस को दंतेवाड़ा को छोड़कर अन्य 11 सीटों पर जीत मिली थी. 2019 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने दंतेवाड़ा सीट भी जीत ली थी.

सामाजिक समीकरणों की बात करे तो संभाग की 12 में 11 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. सिर्फ जगदलपुर सीट ही अनारक्षित है.

अनारक्षित जगदलपुर सीट पर कांग्रेस ने इस बार सामान्य की जगह ओबीसी(कलार समाज) से उम्मीदवार खड़ा किया है. भाजपा ने सामान्य वर्ग में ही जैन समाज की जगह ठाकुर समाज से प्रत्याशी उतारा है.

अन्य 11 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. आदिवासी वर्ग में कांग्रेस ने गोंड समाज से 8, भतरा समाज से 2, मुरिया समाज से 1 को प्रत्याशी बनाया है. वहीं भाजपा ने गोंड समाज से 5, मुरिया समाज से 3, दोरला समाज से 1, हल्बा समाज से 1 और भतरा समाज से 1 प्रत्याशी हैं.

गोंड समाज कांग्रेस के जो प्रत्याशी हैं उनमें- रूप सिंह पोटाई, सावित्री मंडावी, शंकर ध्रुव, संतराम नेताम, मोहन मरकाम, छविन्द्र कर्मा, विक्रम मंडावी, कवासी लखमा शामिल हैं. भतरा समाज से जो प्रत्याशी हैं उनमें- चंदन कश्यप और लखेश्वर बघेल शामिल हैं. वहीं मुरिया समाज से दीपक बैज प्रत्याशी हैं.

गोंड समाज से भाजपा के जो प्रत्याशी हैं उनमें- विक्रम उसेंडी, गौतम उइके, आशाराम नेताम, नीलकंठ टेकाम और लता उसेंडी शामिल हैं. मुरिया समाज से मनीराम कश्यप, विनायक गोयल शामिल हैं. माड़िया समाज से चैतराम अटामी, दोरला समाज से सोयम मुका, हल्बा समाज से महेश गागड़ा, भतरा समाज से केदार कश्यप

अंतागढ़ – कांग्रेस ने चेहरा बदला, भाजपा को पुराने पर ही भरोसा

अंतागढ़ में इस बार कांग्रेस ने चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक की जगह भाजपा से कांग्रेस में आने वाले रूप सिंह पोटाई को उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा ने अपने पुराने नेता और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी पर ही भरोसा जताया है. वैसे इस सीट पर कांग्रेस का बागी विधायक अनूप नाग भी प्रत्याशी हैं. इससे मुकाबला यहाँ त्रिकोणीय हो गया है.

विशेष बात- विक्रम उसेंडी के पास तीन दशक से अधिक का राजनीतिक अनुभव है. 4 बार के विधायक और 1 बार के सांसद हैं. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं. रमन सरकार में मंत्री रह चुके हैं. रूप सिंह पोटाई दो बार सरपंच रहे हैं. भाजपा से कांग्रेस में आए हैं. पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. मौजूदा विधायक अनूप नाग और पूर्व विधायक मंतूराम पवार भी चुनावी मैदान में हैं.

2018 का आंकड़ा- पहली बार चुनाव लड़ने वाले कांग्रेस प्रत्याशी अनूप नाग ने अंतागढ़ से 4 बार के विधायक रहे भाजपा प्रत्याशी विक्रम उसेंडी को 13 हजार 414 मतों से हरा दिया था. अनूप नाग को 57061 और विक्रम उसेंडी को 43647 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनाव और एक उपचुनाव में 4 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 08, 13 और 14 उपचुनाव में भाजपा जीती. 2018 में कांग्रेस ने यहां जीत दर्ज की.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक इस बार भाजपा बाजी मार सकती है.

भानुप्रतापपुर- भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस को मंडावी परिवार पर ही भरोसा

इस सीट पर भाजपा ने अपना चेहरा बदला है. भाजपा से यहां गौतम उइके प्रत्याशी हैं. 2018 में देवलाल दुग्गा प्रत्याशी थे, जबकि 2022 उचुनाव में ब्रम्हानंद नेताम प्रत्याशी थे. वहीं कांग्रेस ने मंडावी परिवार ही भरोसा जताया है. 2018 में मनोज मंडावी जीते थे, उनके निधन के बाद 2022 उपचुनाव में सावित्री मंडावी जीतीं थी. सावित्री मंडावी को एक बार फिर मौका पार्टी ने दिया है.

विशेष बात- इस सीट चतुष्कोणीय मुकाबला है. यहां सर्व आदिवासी समाज(हमर राज पार्टी) और आम आदमी पार्टी भी मुकाबले में हैं. हमर राज से अकबर कोर्राम और आप से प्रदेश अध्यक्ष कोमल हुपेंडी चुनावी मैदान में हैं. दोनों ही दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री मंडावी भी दूसरी बार लड़ रही हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी गौतम उइके पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. गौतम उइके जनपद अध्यक्ष रह चुके हैं.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी मनोज मंडावी ने भाजपा प्रत्याशी देवलाल दुग्गा को 26 हजार 693 मतों से हराया था. मनोज मंडावी को 72520 और कांग्रेस प्रत्याशी देवलाल को 45827 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद – राज्य बनने के बाद हुए अभी तक उपचुनाव सहित 5 चुनावों में 3 बार कांग्रेस, 2 बार भाजपा जीती है. 2003 और 08 में भाजपा और 2013, 18 और 22(उपचुनाव) में कांग्रेस जीती है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक सावित्री मंडावी का पलड़ा भारी है.

कांकेर- कांग्रेस और भाजपा दोनों ने बदला चेहरा, भूतपूर्व और नए मुकाबला

इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही चेहरा बदला है. कांग्रेस ने तो मौजूदा विधायक शिशुपाल शोरी को बदलकर पूर्व विधायक शंकर ध्रुव को उम्मीदवार बनाया है, जबकि भाजपा ने 2018 में चुनाव लड़ने वाले हरिशंकर नेताम की जगह आशाराम नेताम को मौका दिया है. दोनों के बीच पहली बार मुकाबला है.

विशेष बात- पूर्व विधायक शंकर ध्रुव तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. एक बार जीते हैं, एक बार हारे हैं. वहीं आशाराम पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा अनुसूचित जनजाति के जिलाध्यक्ष हैं. सामाजिक रूप से बेहद सक्रिय हैं. बीते चार चुनाव में विधायक रिपीट नहीं हुए.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी शिशुपाल शोरी ने भाजपा प्रत्याशी हीरा मरकाम को 19 हजार 804 वोटों से हराया था. शोरी को 69053 और मरकाम को 49249 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- अब तक हुए चार चुनावों में 2 बार कांग्रेस और 2 बार भाजपा जीती है. 2003 और 08 में भाजपा, जबकि 2013 और 18 में कांग्रेस को जीत मिली है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक सामाजिक समीकरण में आशाराम भारी पड़ सकते हैं

केशकाल- भाजपा ने बदला चेहरा, मुकाबला नेताम बनाम टेकाम

इस सीट पर भाजपा ने अपना चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने रिटायर्ड आईएएस नीलकंठ टेकाम को उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस ने दो बार के विधायक संतकुमार नेताम पर ही भरोसा जताया है. इस तरह यहां मुकाबला नेताम बनाम टेकाम हो गया है. बीते चुनाव में भाजपा से हरिशंकर नेताम प्रत्याशी थे.

विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी नीलकंठ कोंडागांव जिले में कलेक्टर रहे हैं. केशकाल विधानसभा कोंडगांव जिले में ही. लिहाजा बतौर प्रशासनिक अधिकारी कार्यक्षेत्र रहा है. पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं कांग्रेस प्रत्याशी संतकुमार सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आए हैं. 2013 में विधायक बनने से पहले पुलिसकर्मी रहे हैं. सहज रहनशील के चलते लोकप्रिय हैं.

2018 का आंकड़ा- बीते चुनाव में संतकुमार नेताम ने हरिशंकर नेताम को 16 हजरा 972 मतों से हराया था. संतकुमार को 73470 और हरिशंकर को 56498 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनाव में 2 बार भाजपा, 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 08 में भाजपा, जबकि 2013 और 18 में कांग्रेस जीती है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक इस बार मुकाबला कड़ा है, टेकाम बाजी पलट सकते हैं.

कोंडागांव- मंत्री बनाम पूर्व मंत्री, किसके लिए खतरे की घंटी ?

इस सीट पर एक बार फिर मुकाबला पुराने प्रतिद्वंदियों के बीच है. दोनों ही प्रत्याशी चौथी बार आमने-सामने हैं. मंत्री बनाम पूर्व मंत्री के बीच टक्कर है. कांग्रेस ने मंत्री मोहन मरकाम पर भरोसा जताया, तो भाजपा ने पूर्व मंत्री लता उसेंडी को एक बार फिर मौका दिया है.

विशेष बात- मोहन मरकाम दो बार के विधायक हैं, एक बार हारे हैं. चौथी बार चुनाव लड़ रहे हैं. पीसीसी अध्यक्ष रहे हैं और वर्तमान में मंत्री हैं. वही लता उसेंडी भी दो बार विधायक और मंत्री रह चुकी हैं. लता उसेंडी 5वीं बार चुनाव लड़ रही हैं, दो बार हार चुकी हैं.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी मोहन मरकाम ने भाजपा प्रत्याशी लता उसेंडी को सिर्फ 1796 वोटों से हराया था. मरकाम को 61582 और उसेंडी को 59786 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 08 में भाजपा और 2013 और 18 में कांग्रेस को जीत मिली है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा प्रत्याशी उसेंडी कड़ी टक्कर के बीच बाजी पलट सकती हैं.

नारायणपुर- दोनों ने नहीं किया कोई बदलाव, पुराने पर लगाया दांव

इस सीट पर भी कांग्रेस और भाजपा ने किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया है. पुराने चेहरों पर दोनों दल ने दांव लगाया है. कांग्रेस से एक बार फिर चंदन कश्यप ही प्रत्याशी हैं, जबकि भाजपा ने पूर्व मंत्री केदार कश्यप को ही फिर मौका दिया है.

विशेष बात- केदार कश्यप राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं. स्व. बलिराम कश्यप के बेटे हैं. नारायणपुर से 2003 से 13 तक लगातार 3 बार विधायक दो बार मंत्री रहे हैं. पांचवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. वहीं चंदन कश्यप राजनीति में आने से पहले शिक्षक रहे हैं. बहुत ही लो-प्रोफाइल रहने वाले नेता के तौर पर लोकप्रिय हैं. दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी चंदन कश्यप ने भाजपा प्रत्याशी केदार कश्यप को 26 सौ 47 वोटों से हराया था. चंदन कश्यप को 58652 और केदार कश्यप को 56005 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनाव में 3 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा प्रत्याशी केदार कश्यप इस बार मजबूत हैं.

बस्तर- भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस बघेल के भरोसे

इस सीट पर भाजपा ने अपना चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने डॉ. सुभाऊ कश्यप की जगह मनीराम कश्यप को उम्मीदवार बनाया है. वहीं कांग्रेस को दो बार के विधायक लखेश्वर बघेल पर ही भरोसा जताया है. लखेश्वर बघेल तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं.

विशेष बात- भाजपा प्रत्याशी मनीराम कश्यप पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. वे जिला पंचायत, जनपद पंचायत सदस्य और सरपंच रहे हैं. कांग्रेस प्रत्याशी लखेश्वर बघेल के छोटे भाई के साढ़ू हैं. प्रभावशील भतरा जनजाति से आते हैं. वहीं लखेश्वर बघेल सहजता के लिए लोकप्रिय हैं. दो बार के विधायक हैं.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी लखेश्वर बघेल ने भाजपा प्रत्याशी डॉ. सुभाऊ कश्यप को 33 हजार 471 वोटों से हराया था. बघेल को 74378 वोट और कश्यप को 40907 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2003 और 08 में भाजपा जीती थी, जबकि 2013 और 18 में कांग्रेस ने जात हासिल की थी.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक लखेश्वर बघेल का पलड़ा भारी है.

जगदलपुर- कांग्रेस और भाजपा दोनों ने बदला चेहरा, पूर्व महापौरों के बीच मुकाबला

इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों ने ही चेहरा बदल दिया है. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक रेखचंद जैन की जगह पूर्व महापौर जतिन जायसवाल को उम्मीदवार बनाया है. वहीं भाजपा ने भी संतोष बाफना की जगह पूर्व महापौर किरणदेव पर दांव लगाया है.

विशेष बात- दोनों ही प्रत्याशी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. भाजपा प्रत्याशी किरणदेव 2009 से 2014 तक महापौर रहे हैं, जबकि जतिन जायसवाल 2014 से 2019 तक महापौर रहे हैं. जगदलपुर सीट 2008 में सामान्य हुआ है. इससे पहले यह एसटी आरक्षित थी.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी रेखचंद ने 27 हजार 440 वोटों से भाजपा प्रत्याशी संतोष बाफना को हराया था. जैन को 76556 और बाफना को 49116 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 3 बार भाजपा और 1 बार कांग्रेस जीती है. 2003, 08 और 13 में भाजपा में, जबकि 2018 में कांग्रेस जीती थी.

चित्रकोट- भाजपा और कांग्रेस दोनों ने बदला चेहरा, सांसद को मिला मौका

इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने चेहरा बदला है. कांग्रेस ने उपचुनाव जीतकर आने वाले विधायक राजमन बेंजान की जगह सांसद दीपक बैज पर भरोसा जताया है. दीपक 2018 में विधानसभा जीते थे, बाद में बस्तर लोकसभा जीतकर सांसद बन गए थे. उपचुनाव में कांग्रेस से राजमन जीते थे. वहीं भाजपा ने उपचुनाव हारने वाले पूर्व विधायक लच्छूराम कश्यप की जगह विनायक गोयल को प्रत्याशी है.

विशेष बात- कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बैज पीसीसी अध्यक्ष हैं. बस्तर के युवा सांसद हैं. दो बार के विधायक हैं. सहज जीवनशैली के लिए लोकप्रिय हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी विनायक गोयल पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. सरपंच, जनपद और जिला पंचायत सदस्य रहे हैं. भाजपा के मंडल अध्यक्ष हैं.

2018 और 19 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी दीपक बैज ने 2018 चुनाव में भाजपा प्रत्याशी लच्छूराम कश्यप को 17 हजार 770 वोटों से हराया था. बैज को 62616 और कश्यप को 44846 वोट मिले थे. वहीं 2019 उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजमन बेंजाम ने भाजपा प्रत्याशी लच्छूराम 17862 वोटों से हराया था. बेंजाम को 62097 और कश्यप को 44235 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार भाजपा और 2 बार कांग्रेस जीती है. 2003 और 08 में भाजपा, जबकि 2013 और 18 में कांग्रेस को जीत मिली थी.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक दीपक बैज का जीत की हैट्रिक लगा सकते हैं.

दंतेवाड़ा- भाजपा और कांग्रेस दोनों ने चेहरा बदला, अटामी बनाम कर्मा

इस सीट पर भी भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही चेहरा बदल दिया है. भाजपा ने स्व. भीाम मंडावी परिवार की पत्नी की जगह चैतराम अटामी को प्रत्याशी बनाया है. वहीं कांग्रेस ने मौजूदा विधायक देवती कर्मा की जगह उनके बेटे छविन्द्र कर्मा को मौका दिया है.

विशेष बात- भाजपा और कांग्रेस दोनों प्रत्याशी पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. चैतराम अटामी भाजपा जिला अध्यक्ष हैं. जिला, जनपद सदस्य रहे हैं. वहीं छविन्द्र कर्मा स्व. महेन्द्र कर्मा के बेटे हैं. कर्मा परिवार राजनीतिक अनुभव बहुत लंबा है.

2018 और 2019 उपचुनाव का आंकड़ा- 2018 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे स्व. भीमा मंडावी ने जीत दर्ज की थी. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी देवती कर्मा को 21 सौ 72 वोटों से हराया था. मंडावी को 37990 और कर्मा को 35818 वोट मिले थे. वहीं लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान नक्सली हमले में भीमा मंडावी की मौत के बाद हुए 2019 उपचुनाव में कांग्रेस ने सीट भाजपा से छीन ली थी. कांग्रेस प्रत्याशी देवती कर्मा ने स्व. भीमा की पत्नी ओजस्वी मंडावी को 10 हजार मतों से हरा दिया था.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनाव और एक उपचुनाव में 2 बार भाजपा और 3 बार कांग्रेस जीती है. 2003 में कांग्रेस, 2008 में भाजपा, 2013 में कांग्रेस, 2018 भाजपा और 2019 उपचुनाव में कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा का पलड़ा भारी है.

बीजापुर- पुराने चेहरों पर भरोसा, फिर से मंडावी बनाम गागड़ा

इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा ने पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया है. 2018 में आमने-सामने हो चुके विक्रम मंडावी और महेश गागड़ा फिर से एक-दूसरे के खिलाफ मैदान में हैं. कांग्रेस ने मौजूदा विधायक विक्रम मंडावी को उम्मीदवार बनाया, तो भाजपा ने पूर्व मंत्री महेश गागड़ा को प्रत्याशी बनाया है.

विशेष बात- विधायक विक्रम मंडावी दूसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं, युवा हैं, तेज-तर्रार है, जंगल के अंदर पकड़ मजबूत रखते हैं. आदिवासियों के बीच लोकप्रिय हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी महेश गागड़ा भी युवा हैं. नक्सलियों के निशाने पर रहते हैं. चुनाव हारने के बाद क्षेत्र में ही सक्रिय रहे हैं.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम मंडावी ने भाजपा प्रत्याशी महेश गागड़ा को 21 हजार 584 वोटों से हराया था. मंडावी को 44011 और गागड़ा को 22427 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में 2 बार कांग्रेस और 2 बार भाजपा जीती है. 2003 में कांग्रेस, 2008 और 13 में भाजपा और 2018 में कांग्रेस.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक भाजपा पलड़ा इस बार भारी है.

कोंटा- भाजपा ने बदला चेहरा, कांग्रेस में फिर से लखमा

इस सीट पर भाजपा ने चेहरा बदल दिया है, लेकिन कांग्रेस का कवासी लखमा पर भरोसा बरकार है. भाजपा ने यहाँ सोयम मुक्का को प्रत्याशी बनाया है.

विशेष बात- कोंटा कांग्रेस का अभेद्य किला बन चुका है, जिसे भाजपा तमाम प्रयासों के बाद भी नहीं भेद पा रही है. कवासी लखमा बीते पांच चुनावों(1998) से लगातार जीत रहे हैं, छठवीं बार मैदान में हैं. वहीं सोयम मुक्का पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. सोयम के पिता सोयम जोगईया दो बार विधायक रहे हैं.

2018 का आंकड़ा- कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा ने भाजपा प्रत्याशी धनीराम बारसे को 6 हजार 709 मतों से हराया था. लखमा को 31933 और बारसे को 25244 वोट मिले थे.

राज्य बनने के बाद- राज्य बनने के बाद हुए चार चुनावों में कांग्रेस ही जीती है. 2003 से लगातार कांग्रेस प्रत्याशी कवासी लखमा जीत रहे हैं.

स्थानीय जानकारों के मुताबिक इस बार मुकाबला कांटे का है, परिणाम कुछ भी हो सकता है.

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Author: dhaaranews

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