छत्तीसगढ़ प्रदेश की देसी बकरी को “अंजोरी” नाम से राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो द्वारा पंजीकृत किया गया। यह प्रदेश की पहली एकमात्र बकरी की नस्ल है जो पंजीकृत की गई। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नस्ल पंजीकरण समिति द्वारा विगत 12 मई 2023 के बैठक में यह निर्णय लिया गया तथा निदेशक राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो द्वारा जानकारी दी गई की अंजोरी बकरी का पंजीयन क्रमांक India_Goat_2600_ANJORI_06038 निर्धारित किया गया है। इसके पूर्व भी विश्वविद्यालय द्वारा कोसली गाय एवं छत्तीसगढ़ी भैंस का पंजीयन किया गया है। छत्तीसगढ़ की देसी बकरियों में यहां के वातावरण में रहन-सहन के लिए अनुवांशिक गुण विद्यमान है। यह एक मध्य आकार की मांस उत्पादन करने वाली नस्ल हैं। यह मुख्यतः भूरे रंग का तथा पेट में काले/सफेद रंग के धब्बे होते हैं। छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्र जैसे दुर्ग, बेमेतरा, राजनांदगांव, बालोद, कांकेर, धमतरी आदि में मूल रूप से पाए जाते है। इसकी खासियत यह है कि यह बकरी कम आयु में परिपक्व हो जाती है तथा जुड़वा बच्चे देने की क्षमता भी अधिक होती है वयस्क नर 32 से 35 किलोग्राम और मादा 25 से 30 किलोग्राम की होती है बाह्य परजीवी का संक्रमण इनमें कम होता है इस देसी बकरी के पालन में कम लागत होने एवं पारंपरिक रीति से पाले जाने की वजह से किसान इन्हें पालना पसंद करते हैं। डॉ.के.मुखर्जी प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष पशु अनुवांशिक एवं प्रजनन विभाग एवं टीम ने इस नस्ल के पंजीयन में मुख्य भूमिका निभाई। डॉ.के.मुखर्जी के अनुसार नस्ल के पंजीयन की प्रक्रिया लंबी होती हैं। सर्वप्रथम राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो के दिशा निर्देशों के अनुसार तथ्य संग्रह कर पंजीयन हेतु भेजा गया था, जिसके उपरांत उस संस्था (भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्) के वैज्ञानिक एवं विशेषज्ञों द्वारा तथ्यों को छत्तीसगढ़ में आकर सत्यापित किया गया। पंजीयन करने से इस छत्तीसगढ़ प्रदेश की बकरी की नस्ल को एक पहचान मिली तथा भारत शासन द्वारा भविष्य में संरक्षण एवं अनुवांशिक गुण सुधार हेतु राशि उपलब्ध कराई जाएगी जो यहां के किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहयोगी साबित होगी। डॉ. के.मुखर्जी द्वारा यह जानकारी दी गई की राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो स्थित नेशनल जीन बैंक में संरक्षण हेतु वयस्क नरों के वीर्य के नमूने भेजना निर्देशित किया गया है। हाल ही में ब्यूरो द्वारा कामधेनु विश्वविद्यालय को एक परियोजना दी गई है जिसमें इस प्रदेश के पशुओं का लक्षण वर्णन, अनुवांशिकी गुण, पंजीयन एवं प्रलेखीकरण किया जाएगा। दाऊ श्री वासुदेव चंद्राकर कामधेनु विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. आर.आर.बी.सिंह ने छत्तीसगढ़ की एकमात्र बकरी की नस्ल पंजीयन होने पर टीम को बधाई दी है माननीय कुलपति जी का कहना है कि इस नस्ल को पंजीयन करने से इसका अनुवांशिक सुधार एवं संरक्षण कर किसानों को वितरित किया जाएगा जिससे उनकी आर्थिक स्थिति सुधरेगी विश्वविद्यालय इसके अनुवांशिक सुधार एवं संरक्षण हेतु निरंतर कार्यरत रहेगी। कुलसचिव डॉ.आर.के.सोनवणे ने इस महत्वपूर्ण उपलब्धि पर डॉ.के. मुखर्जी एवं उनकी समस्त टीम को बधाई एवं शुभकामनाएं दी। पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग के प्राध्यापक एवं विभागाध्यक्ष डॉ.के. मुखर्जी ने इस काम में जुड़े सभी सदस्यों को बधाई दी है। उनका कहना है कि वर्तमान में अन्य प्रदेशों के उन्नत नस्ल जैसे जमुनापारी, सिरोही आदि से संकरण से प्रदेश के देसी नस्ल की शुद्धता नष्ट होती जा रही है। अतः इसके संरक्षण एवं अनुवांशिक सुधार हेतु केंद्र शासन को परियोजना सौंपी गई है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा क्षेत्रों के बकरी में बस्तर क्षेत्र के बत्तख का विस्तृत अध्ययन किया गया है। इसी बकरी को सरगुजी बकरी के नाम से एवं बत्तख को नागहंस बत्तख के नाम से पंजीयन की कार्रवाई जारी है।