लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर को लेकर खूब चर्चा हो रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बीजेपी को राम मंदिर उद्घाटन का फायदा आम चुनाव में मिल सकता है। ऐसे में विपक्षी धड़ा इंडिया गठबंधन का विजयी रथ रोकने के लिए रणनीति बनाने में जुटा हुआ है।
नई दिल्ली : बीजेपी आम चुनाव से पहले 22 जनवरी को अयोध्या के राम मंदिर में होने वाली प्राण प्रतिष्ठा को लगातार तीसरी जीत का माध्यम मान रही है। ऐसे में वह इस मौके पर किसी तरह की ढिलाई नहीं देना चाहती। पार्टी अगले तीन महीने तक इसी बहाने पूरे देश में ऐसा माहौल बनाना चाहती है कि BJP को कहीं भी किसी तरह की चुनौती न मिले और विपक्ष का मनोबल उठने से पहले ही दब जाए। उसे लगता है कि I.N.D.I.A. गठबंधन एक सीट पर एक उम्मीदवार देने की कोशिश कर रहा है।
ऐसे में पार्टी इन तमाम सीटों पर जीत के लिए पचास फीसदी वोट की बाधा पार करना चाहती है, क्योंकि ऐसा न किया तो I.N.D.I.A. गठबंधन हाथ आई बाजी छीन सकता है। खुद पीएम मोदी ने इस आम चुनाव को हल्के में न लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं को कम से कम पचास फीसदी वोट पाने का टारगेट दिया है। इन्हीं कवायदों के मद्देनजर BJP को लगता है कि इस बार राम मंदिर से निकला आशीर्वाद उसके काम आएगा।
मान क्यों नहीं रहीं ममता
इन दिनों I.N.D.I.A. गठबंधन में सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिरकार पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी को बिहार के सीएम नीतीश कुमार से क्या दिक्कत है? अंदरखाने से छनकर आती खबरें बताती हैं कि I.N.D.I.A. गठबंधन के संयोजक पद के लिए नीतीश कुमार के नाम पर लगभग सहमति बन चुकी थी, लेकिन ऐन मौके पर ममता ने अड़ंगा लगा दिया। वह उनके नाम पर सहमत नहीं हुईं। शुरू में नीतीश कुमार की पार्टी को लगा कि कांग्रेस उनके नाम को रोक रही है। लेकिन बाद में JDU नेताओं को भी अहसास हो गया कि सिर्फ ममता की वजह से ही नीतीश के नाम पर गतिरोध पैदा हुआ।
टीएमसी चीफ को दिक्कत क्या है?
कांग्रेस के एक सीनियर नेता ने JDU कैंप को यहां तक संदेश पहुंचा दिया कि अगर ममता मान जाएं तो एक मिनट में नीतीश के नाम का एलान हो जाएगा। अब यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि ममता बनर्जी को आखिर उनके नाम से परेशानी क्या है। याद करें तो ममता बनर्जी और नीतीश कुमार के बीच पहले अच्छे संबंध रहे हैं। I.N.D.I.A. गठबंधन से पहले भी दोनों कई मौके पर एक दूसरे के साथ खड़े हो चुके हैं। दोनों NDA में भी साथ रह चुके हैं। ऐसे में अब अचानक क्या हुआ जो ममता नीतीश के नाम पर नहीं मानीं। इसके पीछे एक चुनावी रणनीतिकार की भूमिका पर खास जोर दिया जा रहा है।
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